Book Title: Jain Siddhanta Sangraha
Author(s): Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar

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Page 400
________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। [४३९ तुम चरन चढाऊ सार, ताफक मुक्ति वरों ॥ हरि मेरु सुदर्शन नाय, जिनवर न्हौन करें। हम पून इत गुण गाय, मङ्गल मोद धरै ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं भष्टादश दोषरहित षट्चत्वारिंशद्गुण सहित श्रीमदईपरमेष्टिने मोक्षफलपाप्तये फलं निर्वपापीति स्वाहा । जल मादिक माठ भदोष, तिनका अर्घ करों। तुम पद पूनों गुण कोप, पुरन पद मु धरों ॥ हरि मेरु सुदरशन नाय, जिनवर न्हौन करें। हम पूजे इत गुण गाय, वदरी मोद धेरै ॥ ९॥ ॐ हीं अष्टादशदोषरहित षट्चत्वारिंशदगुणसहित श्रीमदईत्परमेष्टिने अनध्यपदपाप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । जयमाल। (जोगीरासा) जन्मसमय उच्छत्र करने को. इन्द्र शचीयुत पायो। विहको कछु वरणन करवेको, मेरो मन उमगायो। बुधि जन मोकों दोष न दीनो, थोरी बुद्धि मुकायो। साधू दोष क्षमै सबहीके, मेरी करौ सहायौ॥ १॥ (छन्द कामिनी-मोहन-मात्रा २०।) जन्म जिनरानको नहिं निन नानियों। • इन्द्र परनिंद्र सुर सकल भकुनानियों ॥ देव देवाङ्गना चालिय जयकारतीं। . शचिय मुरपति सहित करति मिन भारती ॥१॥

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