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जैनसिद्धांतसंग्रह। फिर आगे पर्वतपर चढ़ाव। चढ़ प्रथम कूटको चले नाव ॥ तहां दर्शनकर भागे सुनाय । तहां द्वितिय टोंकका दर्श पाय॥१०॥ वहां नेमनाथके चरण मान । फिर है उतार भारी महांन । वहां चढ़कर पंचम टोंक जाय । अति कठिन चढ़ाव तहां लखाय॥११ श्रीनेमनापका मुक्ति थान | देखत नयनों मति हर्ष मान ॥ .. इक विम्ब चाणयुग वहां नान । मवि करत वंदना हर्ष ठान ॥१२ कोई करते भय जय भक्ति लाय | कोई स्तुति पढ़ते तहं बनाय॥ तुम त्रिभुवनपति त्रैलोक्य पाल । मम दुःख दूर कीने दयाल ॥१शा तुम रान ऋद्धि भुगती न कोई । यह मथिररूप संसार भोई ॥ तम मावपिता घर कुटुमद्वार । तज राजमतीसी सती नार ॥१॥ द्वादश भावना भाई निदान । पशुपंदि छोड़ दे अभय दान । शेसावनमें दिक्षा सुधार । तप कर तहां कर्म किये सुक्षार ॥११॥ वाही वन केवल ऋद्धि पाय । इन्द्रादिक पूजे चरण माय | वहां समोशरणरचियो विशाल । मणिपंच वर्णकर मतिं रसाल ॥१६ वहां वेदी कोट समा अनुप । दरवाजे भूमि बनी मुरूप ।। बसु प्रतिहार्य छत्रादि सार । बर द्वादश समा बनी मपार ॥१॥ करके विहार देशों मंझार । भवि नीव करे भवसिंधु पार ॥ पुनः रोंक पंचमीको सुमाय । शिव थान लहो मानंद पाय || सो पूजनीक वह थान नान | वंदत मन तिनके पाप हान । तहांसे सुबहत्तर कोड़ि और । मुनि सात शतक सब कहे मोर ॥१९ उस पर्वतसे शिवनाथ पाय | सब भूमि पूनने योग्य थाय ॥ वहां देश देशके भम्प भाय । वंदन कर बहु भानंद पाय ॥२०॥ पूजन कर कीनो पाप नाश । बहु पुण्य बंध कीनो प्रकाश ॥