Book Title: Jain Siddhanta Sangraha
Author(s): Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
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३८६] जैनसिद्धांतसंग्रह। बहुगुणसंपदसक पामतमपि मधुरवचनविन्यासंकटम् । नयमत्यवतंसकलं तब देव ! मतं समन्तभदं सकलम् ॥ १११॥ यो निःशेषनिनोक्तधर्मविषयः श्रीगौतमायः कृतः
मुक्तारमलैः स्तवोयमसमः स्वल्पैः प्रसन्नः पदैः। . सहय रूपानमदो यथायवगतः किञ्चित लेशतः
स्येयाश्चन्द्रदिवाकरावषि बुषप्रहादचेतस्यतम् ॥
(४) द्रव्यसंग्रह। (श्रीमन्नेमिचन्द्र सि• चक्रवर्ती विरचित) चीवमनीवं दवं निणवरवसहेण जेण गिट्टि । देविंदविदवंद देत सव्वदा सिरसा ॥१॥ नीवो उपभोगममो ममुत्ति क्त्ता सदेहपरिवाणी। भोत्ता संसारत्यो सिदो सो विस्ससोडगई ॥२॥ विकाले चदुपाणा इंदिप कमाउ माणाणो.य। बवहारा तो जीवो णिञ्चयणपदो दु चेदणा नंस ॥१॥ उपभोगो दुवियप्पो दसणं गाणं च दंपणं चदुयो । चक्खु मचाख मोही दसणमष चल णेयं ॥ १ ॥ णाणं अवियप्पं मदिसुदमोही अणाणणामाणि । मणपञ्जय केवलमावि पञ्चसंपरोक्खमेयं ॥५॥ भट्टबदुणाणवंसंण सामण्ण नीवलक्खणं भणियं । ववहारा मुरणया मुन्ड पूण दसणं गं.णं ॥६॥ ..

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