Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 17
________________ अहा वीर्य-सत. कर्मोंका नाश हम कैसे कर सकेंगे ? " यह विचार बडे २ बलवानको भी निर्वल बना देनेको काफी है. परन्तु धर्मशास्त्रका दूसरा विचार भी भूल जाना न चाहिए; " जिस कर्मको हमने बांधा है उसका नाश भी हम कर सकते है. आत्माकी शक्ति अनन्त है और इसीसे क्षणभरमें आत्मा अनन्त कर्म समुदायका नाश कर सकती है. प्रचण्ड सूर्यके साम्हने, बदल देखते ही देखते बिखर जाते हैं. इसी तरह जब आत्मा अपना सच्चिदानन्दमय व ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय स्वरुप का अनुभव करती है तब उसकी शक्ति बडी प्रबल हो जाती है और वह चाहे जैसे कर्म क्यों न हो उनके दलको दूर कर देती है." अहोऽनन्तवीर्योऽयमात्मा विश्वप्रकाशकः । त्रैलोक्य चालयत्येव ध्यानशक्तिप्रभावतः ॥ विश्वको प्रकाशित करनेवाली यह आत्मा अनन्त शक्तिवाली है और ध्यानशक्तिके प्रभावसे यह तीनों लोकोंको चला सकती है. इससे हमे चाहिये कि हम आपत्ति पड़ने पर भी, अनेक विघ्नोंके आने पर भी, आत्मविश्वासको न छोडें. क्योंक आत्मविश्वास न होनेसे हम किसी भी महत्वके कामको नहीं कर सकते. किसी भी महापुरुषके जीवन चरित्रको पढिए, आपको सहजमें मालूम होगा कि उसमें और गुण हो या नहीं, आत्मविश्वासका गुण अवश्य होगा. जिस मनुष्यको आत्मबलमें-अपने सामर्थ्य में विश्वास नहीं है वह कभी महत्वका काम कर ही नहीं सकता. ___व्याख्यान देनेवालेको इस गुणकी आवश्यकता है, लिखने वालेको इस गुणकी आवश्यकता है, युद्धवीरको इस गुणकी आवश्यकता है, मुनिजन भी इस गुणके बिना आत्मकल्याण कर नहीं सकते. कोई महत्वका कार्य जिसे हम संसारको अचंभमें डाल दे ऐसा कहें वह इस गुणके अभावमें पूर्ण नहीं हो सकता. इस लिये हम जिस सोपान खडे हो उससे आगे हिम्मत कर बढना चाहिये. “ हमसे क्या हो सकता है ? " " मैं क्या कर सकता हूं ?" ऐसे विचार रखनेवाला मनुष्य कभी अपने निश्चित कार्यमें सफल नहीं मेगा. कहनावत है “ रोता जाय तो मरेकी खबर लावे !" मैं यह कहना नहीं चाहता कि हम एकाएक पहले सोपानसे सातवें सोपानको चढनेके लिये उछल कर अपने पैरोंको तोड बैठे; परन्तु मेरे कहनेका अभिप्राय यह है कि, आत्मशक्ति में विश्वास रखकर सीढी दर सीढी चढते जाना चाहिये.

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