Book Title: Jain Sahitya Suchipatra Author(s): Ratnatrayvijay Publisher: Ranjanvijay Jain PustakalayPage 24
________________ A bener our नाम 34. विशति विशीका शब्दशः विवेचन- 2 46. सद्गति तमारा हाथमां 47. मनोविजय आत्मशुद्धि 48. अनुकंपा 49. श्रावक व्रतोनां विकल्पो 50. आराधक विराधक चतुर्भंगी 51. भावधर्म ( प्रवृत्ति - विध्नजय) 52. योगदृष्टि समुच्चय भा. कि. नं. 35. सीमंधर स्वामी 125 गाथा स्तवन गु. 36. सूचना परिणाम दर्शकयनलेश 37 संथारापोरसी हिंसाष्टक 38. योगसार प्रकरण 39. योग दृष्टिनी सज्झाय 40. कुदरती आफतमां जैननुं कर्तव्य गु. 15 65. जिनभक्ति द्वात्रिंशिका शब्दश: 41. कर्मवाद कर्णिका 15 विवेचन-5 42. चारित्राचार गु. 15 66. साधु सामग्रय द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन - 6 43. चालो मोक्षनुं स्वरुप समझीए 44. प्रश्नोत्तरी 45. भावधर्म (प्रणिधान) 53. चित्तवृत्ि 54. दर्शनाचा 55. अनेकान्तवाद 56. शासनस्थापना 57. गृह जिनालय महामंगलकारी 58. भगवती प्रवज्या परिचय 59. पुद्गल वोसिरावानी क्रिया 19 गु. পে পে পে পে পে পে পে ভে পে পে পে পে ভে পে পেপে পে প্রে লে পে পে পে ভে गु. गु. गु. गु. 25 63. मार्ग द्वात्रिंशिका शब्दश: विवेचन - 3 गु. गु. 115 64. जिनमहत्त्व द्वात्रिंशिका शब्दशः गुं. 50 विवेचन - 4 गु. गु. गु. गुं. गु. गु. गु. गु. गु. गु. गु. गु. गु. गु. 559 गु. नाम गु. 15 60. समेतशिखर संवेदना 3061. दान द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन- 1 गु. 30 60 62. देशना द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन-2 गु. A भा. कि. विवेचन-13 574. अपूनर्बंधक द्वात्रिंशिका शब्दश: विवेचन-14 गु. 45 45 30 15 75. सम्यग्द्रष्टि द्वात्रिंशिका शब्दश: 15 विवेचन - 15 गु. 10 20 67. धर्मव्यवस्था द्वात्रिंशिका शब्दशः 50 विवेचन--7 गु. 45 3568. वाद द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन-8 गु. 45 35 69. कथा द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन - 9 गु. 50 70. योगलक्षण द्वात्रिंशिका शब्दश: 45 15 विवेचन-10 1071. पातंजल योग द्वात्रिंशिका शब्दशः 50 विवेचन-11 30 72. पूर्व सेवा द्वात्रिंशिका शब्दश: 15 विवेचन - 12 15 73. मुक्ति अद्वेष द्वात्रिंशिका शब्दशः 20 50 गु. 55 गु. 50 गु. 45 गु. 60 गु. 65 गु. 40 गु. 45 गु. 50Page Navigation
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