Book Title: Jain Sahitya Suchipatra
Author(s): Ratnatrayvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 36
________________ Dominomonantonumentosom80 नं. नाम .. ___भा. कि.नं. नाम भा. कि. 61. तीर्थयात्रानो हेतु भा.2 गु. -63. कल्पसूत्र प्रवचन 62. अष्टान्हिका प्रवचन andi गु. - Lin ب ب ب ب श्री रत्नत्रयी ट्रस्ट प्रवीणकुमार दोशी, 258-गांधीगली, स्वदेशी मार्केट, कालबादेवी रोड, मुंबई-400002 फोन : (022) 22060826 ___लेखक : आ.वि. श्री रलसुंदर सूरीश्वरजी म.सा. नं. नाम . भा. कि.नं. नाम भा. कि. 1. दिल्लीनां दरवाजे थी गु. 100|19. खतरानी घंटडी गु. 40 2. दिल्लीनां दरबार मां गु. 200/20. वीर मधुरी वाणी तारी . गु. 30 3. Alpviram . E. 100 21. डुबकी 4. प्रभु वीर कहे छे.. . 22. तिजोरी 5. शुभ समाचार 23. हस्ताक्षर 6. याद रहेशे इन्दोर गुरु 70|24. महाराष्ट्रनी मर्दानगी 7. तुम ही हो. मेरे प्रीतम 40/25. शुं वात करो छो 8. कदम साचवीने मुकजे -26. हुं स्वस्थ मस्त छु 9. आक्सीजन . 70|27. पवन तारी दिशा बदली नाख। 10. कलियुगका कमाल 70 28. मार्ग तैयार छे आपणे तैयार खरा गु. 11. कलियुगनी कमाल गु. 70/29. दिशा बधी ज खुली छे 12. आंगली चींधणु गु. 50/30. जंग खराखरीनो 13. आक्सीजन हि. 70/31. कमाल 14. बाप रे बाप गु. 50/32. फरी क्यारे मलशे आ जीवन 15. हुं ज केम गु. 40/33. बीजने खेतर जोइए 16. विश्राम स्थल गु. 30 34. मालवानी मर्दानगी 17. आ मां आपणे क्यां गु. 40/35. सूचनाओनुं सौंदर्य 18. हैयानी वात गु. 40/36. हवे तो हद थाय छे 31 DroenomerocroormerocolorOTOBF ب ب ب ب ب ب ب و به وب و

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