Book Title: Jain Sahitya Suchipatra Author(s): Ratnatrayvijay Publisher: Ranjanvijay Jain PustakalayPage 45
________________ . 444 ( Annanomenomenomenomen0) नं. नाम भा. कि.नं. नाम . भा. कि. 57. बत्रीसीनां सथवारे कल्याण 83. पालवे बांध्या रतन पगथारे भा.-1 गु. 35/84. आतम रुपाला खेलं निराला 58. बत्रीसीनां सथवारे कल्याण 85. प्रकाश पथरायो पंथमां पगथारे भा.-2 गु. 35/86. गुरुवंदन-पच्चक्खाण भाष्य 59. बत्रीसीनां सथवारे कल्याण 87. चलो शांति के उपवनमें .. पगथारे भा.-3 गु. 40| 88. कुलक समुच्चय 60. व्युत्पत्तिवाद गु. 40|89. भुवनभानु एक सोनेरी पानुं . .. 61. सप्तभंगी विंशीका सं.गु. 75|90. पंचाचारनी पुष्पवाटिका 62. संवेदन की सुवास __ - 91. संस्कृत धातु रुपावली-1 63. मननां दरद मननी दवा गु. 40/92. संस्कृत धातु रुपावली-2 64. कुवलय माला भा.2 हि. 25/93. यशोधर मुनि चरित्र भा.-1 65. गुरु गुण अमृतवेली रास गु. 25|94. यशोधर मुनि चरित्र भा.-2 गु. 66. तर्कना टांकणा श्रद्धानुं शिल्प गु. 45|95. दरेक प्रश्न आम केम गु. 67. ध्यान अने जीवन भा. 1-2 गु. 45|96. करो गुरु सेवा पामो मुक्ति मेवा गु. 20 68. संवेदन की सरगम हि. - 97. चौमासी आराधना , 69. संवेदननी मस्ती गु. -98. करीए पाप विराम मेलवीए 70. संयमीना रोमे. रोममां - मुक्तिधाम 71. सत्पदादि प्ररुपणा 55|99. जिन वचननो राग बनावे वीतराग गु. 72. मीठा फल मानवनां गु. 30/100. धर्म कीये सुख होय, 73. आहार शुद्धि 20|101. नवपद प्रकाश अरिहंत पद 74. गणधर वाद 20 102. विरागनां उपवनमां 75. गणधर वाद 20|103. दरिसण तरसीए 76. पाप पडल परिहरो 50|104. धर्म केम अने केवो करशो गु. 77. Fragrance of Sentiments E. 25/105.आत्मविकासनो मार्ग 78. Abandant Joy Sentiments E. 30/106. तमने शुं दुःख छे 79. Glimpses of Sentiments E. 25/107. जीवन केवू जीवशो 80. भावना, उद्यान गु. 25/108. वार्ता विहार 81. साधनाथी सिद्धि भणी गु25/109. भाग्यशालीने भूत रले 82. समाधान यात्रा गु. 60 110. आम केम ? C ameramerasachenomenon(40) 4 Home 0Page Navigation
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