Book Title: Jain Sahitya Suchipatra
Author(s): Ratnatrayvijay
Publisher: Ranjanvijay Jain Pustakalay

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Page 25
________________ کی (ARumonomenonenormomenomeno ) नं. नाम भा. कि.नं. नाम भा. कि. 76. ईशानुग्रह द्वात्रिंशिका शब्दशः 85. क्लेशहनोपाय द्वात्रिंशिका शब्दशः . . विवेचन-16 गु. 75 विवेचन-25 . गु. 80 77. दैव पुरुषकार द्वात्रिंशिका शब्दशः 86. योगमाहात्म्य द्वात्रिंशिका शब्दशः . __विवेचन-17 गु. 50/ विवेचन-26 गु. 55 78. योगभेद द्वात्रिंशिका श.विवेचन-18 गु. 65/87. भिक्षु द्वात्रिंशिका श. विवेचन-27 गु. 45 79. योग विवेक द्वात्रिंशिका शब्दशः 88. दीक्षा द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन-19 . गु. 40/ विवेचन-28 80. योगावतार द्वात्रिंशिका शब्दशः 89. विनय द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन-20 गु. 55/ विवेचन-29 81. मित्रा द्वात्रिंशिका श.विवेचन-21 गु. 45|90. केवली मुक्ति द्वात्रिंशिका शब्दशः 82. तारादित्रय द्वात्रिंशिका शब्दशः । विवेचन-30 . गु. 50 विवेचन-22 गु. 45|91. मुक्ति द्वात्रिंशिका श. विवेचन-31 गु. 90 83. कुतर्कग्रह निर्वृत्ति द्वात्रिंशिका शब्दशः 92. सज्जनस्तुति द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन-23 . गु. 45/ विवेचन-32 , गु. 35 84. सद्वृष्टि द्वात्रिंशिका शब्दशः विवेचन-24. गु. 45/ श्री रत्नोदय चेरीटेबल ट्रस्ट, _____C/o. अजयभाई आर. शाह, विनय मेडीकल स्टोर्स, उस्मानपुरा चार रस्ता, आश्रम रोड, अमदावाद-14 फोन नं. : (079) 27542297 • (मो.) 9825890440 लेखक : आ.वि. श्री रत्नचंद्र सूरीश्वरजी म.सा. नं. नाम भा, कि.नं. नाम 1. डहेलावाला स्वाध्याय गु. 100/5. पंचसंग्रह: मूल 2. चालो नवपद आराधवा गु. -6. अंतिम आराधना 3. "मां" गु. -7. भोजन करीए विवेकथी गु.40 4. "सेतु" गु. 20/8. 108 पार्श्वनाथ पूजनविधी गु. 20 CHOOToneroeneracheososarokn 200 12

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