Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 03 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
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२४२ ]
जैन साहित्य संशोधक
Refariयहि रविपसरु किं भिज्जर, बहुवि विसरेह मिलि वि किं गुरुडु गिलिज्जइ; बहु कुरंग आरु करहि किरि काइ मदह, for age as it सञ्चउरि-जिदिह, करिणाणि णु चिरकालि आसि कुवि जोगनरेसरु, वसिय सच्चरि दिहि वीरू जिणेसरु; आरंभिङ आहुड रंगु चामीयर वरतणु,
वरतुरंगदो रहि निमित्तु नरवइहि चलिउ मणु. रायासिहि भडिहि जणु जाव न नामिओ,
सामि करिवरह खंधि रज्जुहु संदामिओ; कवि रज्जु हयगय धरणीयलि,
निविडिय जिम परिचत्त खंड पेच्छं परवलि. fast for व जिणवरतणु ताडिउ, पच्छुत्थsa कुहाडेहिं सो सिरि अंबाडिउ; अजवि दीसह अंगि घाय सोहिय तमु धीरह,
चल जुलु सचउरि-नपरि पणमहु तसु वीरह. गोसाला संग अमर उवसग्ग सहेविणु,
जो न चलिउ झापह जिणिंदु सिवहतग्गयमणुः ae afar उवसग्ग सहवि कि नरह नरिंदह, महु नमहु चरि-वीरु जो चरमजिदिह. ज विरज्जइ समवसरणु चउदेवनिकायदि, जसु पणमिज्जर चलणारविंदु सुरवरसंघाय हि सरज्जह भुवणनाहु जो जंतुहियंकरु, सो पण चरि-नयर सिरिवीरु जिणेसरु. किंकिलि चमर किन्नरदेवझुणि, छत्तधि दहिनिघोस संटिड सीहासणि: भामंडल देहालग्गु जसु तिहुयणि छज्जह, साहिर-रु सो किम पणमिज्जइ.
कुसुम
Aho ! Shrutgyanam
[ खंड ३
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