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जैन साहित्य संशोधक.
[भाग १
स्पष्टरीते ब्राह्मणधर्म सामे थवानुं हतं. जो आप वुद्धना समयना तैर्थिक मताचार्योना सिद्धान्तानुं वर्णन वांचीशुं - जे वर्णन बौद्धोना सामञ्ञफलसुत्तमां आपलं छ,तो आपणने जणाशे के ते सर्व अल्प या बहु अंशे, ते वखतना सुधारको हता. ते बधाथी बुद्धनी जे विशेषता हती ते तेमनी प्रतिभाने लईनेज ही. बुद्धनी माफक महावीर पण एक बीजा सुधारक हता अने ते पोतानो स्वतंत्र मत स्थापवाने सफळ थया हता, एम जे आपण मानीए तो तेमां युक्तिरहितता के असंभवितता जेवुं जणातुं नथी. आ विचारने हुं ऐतिहासिक सत्य तरीके स्थापित करवा दलीला रजु करूं तेनी पहेलां मारे बौद्ध धर्मी पूर्वकालिकताना हिमायतिओए जु करेली वे विरुद्ध युक्तिओनुं निराकरण करवुं जोईए. प्रथम, जो हुं भूलतो न होउ तो हेमिल्टन चुकेनन ( Hamilton Buchauan) ना कथनना आधारे एम मनाय छे के जैनो ज्ञाति व्यवस्था स्वीकारे छे; अने आ मान्यताना पाया उपर जैनधर्मनी उत्पत्तिना संबंधमां नीचेनी कल्पना उभी करवामां आवी छे, के ज्यारे ब्राह्मणोए बौद्धोने त्रास आपवा मांड्यो त्यारे तेओए पोताना धर्मांध प्रतिस्पर्धीओनी साथै समाधान करवा अर्थे ज्ञाति व्यवस्थानो स्वीकार कर्यो. कारण के जो तेमणे एटलं नमतु मूक्युं न होत, तो ब्राह्मणोए ते पाखंडमतने सर्वथा दाबी दीघो होत. आ विचारमाथी एवी कल्पना जन्मी, के आ रीते क्षीण थतो बौद्धधर्मज जैनधर्मना रूपमां परिवर्तित थयो. आ कल्पनानो आ स्थळे हुं उहापोह करवा मांगतो नथी. मात्र एटलुंज जणावीश के ते कल्पनानो हुं अस्वीकार करूं छु.
चातुर्य बनावा कोशीश करता नथी; अने तेथी मनुं तत्त्वज्ञान थोडा तत्त्वभूत विचारो उपर रचाएली एक संस्थिति (System) रूप बने छे. महावीरनं तत्त्वज्ञान तम बनतुं नथी. ते मात्र भिन्न भिन्न विषयो उपर पन्नत्तिना रूपमांज रहे छे तेनी अंदर आध्यात्मिक विषयना विचारसमुच्चयने धारण करवा योग्य थोडा मूळभूत तत्त्वो नथी. तत्त्वज्ञान विषयक विचारोमां तर्कनी पूर्वापर संगति जाळवा उपरांत बुद्धे उदार अने महान् सूत्रोमा, तथा नीतिनी कल्पितवार्ता ओम, मनुष्य जातिना त्रिविध तापना निवारण अर्थे जे दयानी तीव्र लागणी प्रकट करी छे, ते उपरथी तेमनी प्रतिभानु श्रेष्ठत्व स्पष्ट जाई आवे छे. जैन ग्रंथा करतां बौद्धग्रंथोनी महत्ता तेमना नैतिक तत्त्वने लईने छे, में उपर कह वे छे तेम, महावीरे नीतिशास्त्रने अध्यात्मविद्या करतं हलका दरज्जानुं तथा तेना एक अनुषंगी सिद्धांत तरीके मान्युं छे. कारण के तेमनुं खास लक्ष्य परमार्थविद्या उपर हतुं महा वीर अने बुद्धना उपदेशनी आ रूपरेखा आपणने, तेओ बन्ने भिन्न व्यक्तिओ हती एम मानवा दोरे छे. ते बन्नेना मतभेदो पण घणा विचारणीय छे. तेमना तात्त्विक विचारोना पारिभाषिक या सांके तिक शब्दो पण परस्पर मळता आवता नथी. आवीरीते महावीर अने बुद्धने एक मानवामां विरुद्धता वधती जती होवाथी, ते बन्ने प्रतिष्ठित - पुरुषो भिन्न पण समकालीन व्यक्तिओ हती, एम बतावती जैनो अने बौद्धोनी परंपरागत कथाओने साची मानवा तरफ आपण वलण थाय छे. वस्तुस्थिति आवी होवाना लीघे, बन्ने मतोनी वच्चेनं सामान्य सादृश्य स्वाभाविकज छे, एम सहज जणाई आवशे. बन्ने संप्रदायोना संस्थापको समकालीन अने समान देशनिवासी होवाथी, प्राकृतिक नियम प्रमाणे, ते बन्ने एक प्रकारना देशकालानुरूप सर्वसा - मान्य तत्त्वज्ञान अंन नीति विषयक विचारसमूहनो आश्रय ले तेमां नवाई नथी. तमना जमानानु वलण
जैनधर्ममा यति अने श्रावक नामना बेज विभाग छे अने जो कदाचित् हिंदुस्थानना कोई कोई भागमां जैनो लोकव्यवहारमा ज्ञातिभेदो स्वीकारता होय तो, ते प्रमाणे तो, दक्षिण हिंदुस्थानना स्त्रीस्ति अने मुसलमानो तथा सिलोनना बौद्धो पण स्वीकारे
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