Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
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कुमारपाल प्रतिबोध परिचय
'जोई
'डिंडुआणापुर' मां रहेता हता तेथी राजा त्यां गयो. तेनी पासे एक बहुमूल्य मुक्ताहार हतो. तेने वेची तेना द्रव्यथी त्यां एक 'चउवीसजिणालय ' नामे मोठें जैनमंदिर बंधाव्युं' अने पछी साधुपंणुं लई दत्तसूरिनो शिष्य थयो. साधुवत लईने तेणे अनेक प्रकारनां तपश्चरणो को अने ऊंडो शास्त्राभ्यास करी यशोभद्रसूरि नामे आचार्यपद प्राप्त कयु. आचार्य थया पछी तेमणे लोकोने धर्मोपदेश आपवा जुदा जुदा स्थळोमा परिभ्रमण कर्यु. ज्यारे वृद्धावस्थाना योगे शरीर बहु शिथिल अने क्षीणप्राय थयुं त्यारे उज्जयंत (गिरनार ) तीर्थ उपर जई तेमणे अनशनव्रत अंगीकार कर्यु अने समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ थया. तेमना शिष्य प्रद्युम्नसुरि करीने थया जेमणे 'ठाणयपगरण (स्थानकप्रकरण)' नामे ग्रंथ बनाव्यो. तेमना शिष्य गुणसेनसूरि अने तेमना शिष्य देवचंद्रसूरि थया. देवचंद्रसूरिए प्रद्युम्नसूरिरचित 'ठाणयपगरण' उपर टीका बनायी छे. तथा 'शांन्तिजिनचरित्र' लख्यु छे.
देवचंटसरिफरता फरता एक वखते धंधका नामे गाममा गया. त्यां चच्च अने चाहिणी नामे मोढ जातीय वणिग्दंपतीनो चंगदेव नामे एक प्रतिभावान् बालक तेमनी पाले आवया लाग्यो अने निरन्तर तेमनो धर्मबोध सांभाळवा लाग्यो. तेमना उपदेशथी प्रबुद्ध थई बालक चंगदेव तेमनो शिष्य थवा तैयार थयो, अने तेमनी साथेज ते रहेवा-फरवा लाग्यो. फरता फरता देवचंद्रमरि खंभातमां आव्या, अने त्यां, ते बालकना मामा नामे नेमि द्वारा चच्च अने चाहिणीने समजावी-बुझावी, तेने दीक्षा आपी अने चंगदेवना बदले सोमचंद्र नाम स्थाप्यु. अलौकिक बुद्धिशाळी बालक साधु सोमचंद्र थोडाज समयमां सकळ शास्त्रोनो अभ्यास करी समर्थ विद्वान् थयो अने गुरुए तेनी पूर हेमचंद्र एवा नवीन नामनी साथे तेने आचार्यपद प्रदान कर्यु. हेमचंद्राचार्यनी विद्वत्ताथी मुग्धथई सिद्धराज जयसिंह देव तेमना उपर बहु भक्तिभाव धरावतो हतो, अने रेक शास्त्रीय बाबतना तेमनी पासे खुलासा मेळवी संतुष्ट थतो हतो. तेमना उपदेशथी सिद्धराजनी जैनधर्म उपर प्रीति थई हती, अने तेना उपलक्ष्यमां तेणे — रायविहार ' नामे एक जैनमंदिर पाटणमां, अने सिद्धविहार' नामे एक मंदिर सिद्धपरमां बंधाव्यं हतुं. सिद्धराजना कथनथी हेमचंद्राचार्य 'सिद्धहैमव्याकरण' नामे सर्वांगपूर्ण शब्दशास्त्र बनाव्यु हतु. हेमचंद्रचार्यनो अमृतोपम उपदेश लांभळ्या विना सिद्धराजने जरा पण चेन पडतुं न हतुं. ___आवी रोते हेमचंद्रसूरिनो परिचय आपी अमात्य बाहडे कुमारपाल राजाने कहा के-'महाराज ! तमने पण जो धर्मना यथार्थ स्वरूपने जाणवानी इच्छा होय तो भक्तिपूर्वक ए आचार्यनी पासे जई, ए संबंधमां पृच्छा करो.' मंत्रीतुं आ कथन सांभळी राजा हमेशां हेमचंद्राचार्य पासे जई धर्मबोध सांभळवा लाग्यो. - आचार्यजीए प्रथम तो विविध दृष्टांतो अने आख्यानो द्वारा राजाने यथावसर प्राणिहिंसा, यूतरमण, मांसभक्षण, मद्यपान, वेश्यागमन अने धनापहरण इत्यादि दुराचरणोथी मनुष्य अन मनुष्यसमाजनी केवी अधोगति थाय छे, ते वारंवार समजावी, तेनी पासेथी, आखा राज्यमां तेवां दुराचरणोनो, राजामाना रूपमा सर्वथा निषेध कराव्यो. तदनंतर, तेमणे कुमारपालने जैनधर्मप्रतिपादित देव, गुरुअने धर्म तत्वनो विशिष्ट बोध आपवा मांडयो. सदेव, सद्गुरु, अने सद्धर्मनी उपासनाथी आत्मानी केवी प्रगति थाय छे अने असदेव, गुरु, अने धर्मनी उपासनाथी केवी अवगति थाय छ, तेनी, विविध कशानको द्वारा स्पष्ट समजण आपवा मांडी. मारना ए बोधथी कुमारपालनी जैनधर्म तरफ प्रीति वधती मई अने क्रमे क्रमे ते ए धर्म उपर अधिकाधिक अनुरक्त थतो गया. जनधर्म उपरना पोताना अनरागना
, ग्रंथकार सोमपभाचार्य मा ठेकाणे जणावे छे के-ते 'चउवासजिणालय' मंदिर आजे पण त्या (डिआणा परमा) विद्यमान छे.
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