Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 234
________________ ८२ जैन साहित्य संशोधक [भाग - तत्पर पवा जिनकल्पी साधुओ पण नग्नज रहेता २२. ' तेणे या तो शिर मुंडाव जोर्ड हता. पम छतां, तेओने पण नग्नता ढांकवानी एक शिखा मात्र राखवी जोइए. छूट हती. आनियमने सुधारी पोताना साधुओ म १९.. केटलाक ( एम जणावे छ के तेणे) जाण- आ मस्तक मुंडावधानोज विधि करेलो है घस्त्र धोईने (पहेरवू जाईए).' बाधायनमा यनना अनुसार संन्यासी बनती वखते जणाव्यु छ के, 'तेणे वस्त्रने पीत-रक्त वर्णथी रंगीने 'पोताना माथाना, दाढीना तथा शरीरना पहेरवु जोईए.' आ नियम जैनोना करतां बौद्धाना कढाक्या जाईए तथा नख पण उतराववा जोईण नियम सार्थ वधार मळतो आवे छे. कारण के जैनो पण दीक्षा लेती वखते वाळ कपाववाना ओ जैन यतिओने तो वस्त्रोने धोवानो अगर रंगवानो आचारनु अवश्य पालन करे छे अने आथीज निषेध करेला छे. तेमणे तो जे स्थितिमा जे वस्त्र 'मुंड बनीने ( अगर पोताना वाळ उखेडी नाखीने) मळ्यु होय तेज स्थितिमां तेने पहेरवार्नु छ. तेम अगार छोडी अनगार स्थितिमा प्रवेश को.'' छतां-पण कहे जाईए के जैनो ब्राह्मणांना ए आवो उल्लेख सर्वत्र थएला छे. नियमना--क जेनो भावार्थ मात्र एटलोज छे के २३. 'तेणे बीजोनो नाश नहीं करवो जोईए.' संन्यासिओनो वेश बनो शक तेटलो सादी अने वांचनार आचारांगना बीजा स्कंधना घणा सूत्रोमां क्षुद्र होवो जोईए, तेना-मूळआशयने पराकाष्टानो जोई शकशे के अंड, जीव, बीज, अंकुरादिने हानि सीमाए घसडी गया छे. जनो पोताना आचारनी न थई जाय, ते माटे जैन भिक्षुने केटलो बधो कठोरताना विषयमां ब्राह्मण प्रतिस्पर्धिआने पाळ सावचेत रहेवानी भलामण करवामां आवी छे. पाडी देवामां एक प्रकारनुं गौरव समजता होय एम जणाय छ के जैनोप उपर्युक्त नियमने वनस्पतेम देखाय छ. अने तेथी तेओ मलिनता अने ति अने प्राणिवर्गना सघळा सूक्ष्मजीवोने लागु कुत्सितताने यतिजीवन- परम भूवर्ण मानवानी पडे तेयो एक व्यापक नियम बनाव्यो छे. भूल करे छे. आर्था विरुद्ध बौद्धो हमेशा पोताना २४. ( तेणे सघळा ) जीवो प्रत्ये उदासीनता आचारने जेम बने तेम मानव-समाजना बंधारणने राखवी जोईए, पछी ते जीवो गमे तो तेमा प्रति अनुकूल बनाववा प्रयत्नशील रह्या छे. मायाळूपणुं धरावता होय के क्रूरपणुं.' २०. 'तेणे वृक्षो अथवा छोडवाओना भागाने २५. तेणे ऐहिक अगर पारलौकिक कल्याणलेवा नहीं. परंतु जो ते (पोतानी मेळे ) ज़दा थई माटे कोई पण प्रवृत्ति करवी जोईए नहीं.' . गया होय तो ते लेवामां बाघ नथी.' जैनोनो पण छेल्ला बे नियमो तो जैनोना कोई पण आगमतेवोज नियम छे; परंतु तेओ आथी पण आगळ मांथी अक्षरशः वतावी शकाय तेवा छे. कारण के वधीने पोताना यतिओ माटे फक्त तद्दन अचित्त ते जैनधर्मना तत्त्वना मूलभूत छे. महावीर आ वनस्पति अने फळ इत्यादिनेज भिक्षामा लेवानी नियमानं यथार्थरीने परिपालन . आना छूट आपे छे. प्रमाणमां नीचेना उल्लेम्सो बस थशेः 'तेमना (महा२१. वर्षाऋतु सिवाय तेणे (एकज) गाममा बेरात वीरना) शरीर उपर चार मास करतां आधिक रहे नहीं. ' आपणे उपर जोई गया छीप तेम समय पर्यंत अनेक प्रकारनाप्राणिओनो ठठ जाम्यो महावीरे तो आज नियम पाळ्यो हतो. पड़ी अन्य हतो; तेओ, ते उपर हरता फरता हता अने विविध साधुओए गमे ते रीते तेनुं आचरण कय होय. क्लेशो आपता हता.' 'तेमण हमेशां त्रिगुप्तिपूर्वक १ आचारांग सूत्र १, ५, ७, 1. तृण,शीत, अग्नि,माखी,मशक आदिथी जनित अनेक २L. C. २१. ३ आचारांग सूत्र २, ५, २, १, अने १, ७, ५, २. १ बौधायन, २, ५०, १७, १०. ४ सरस्खायो, आचारोग सूत्र. २, २, २, ... २' मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पचहए' ५ आचारांग २, १, ५, ६, अने । मुंअध्ययन. ३ आचारांग सूत्र , ८, १, २, Aho ! Shrutgyanam

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