Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 233
________________ अफ २] डॉ. हर्मन कोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना माटे गौतम अने बौधायन धर्मसूत्रमा' आपेला महावीर गाममा एक रात अने नगरमांपांच रातर्थ संन्यासीना नियमोने जैन यतिओना नियमो साथे वधारे क्यारे पण रह्या न हता. सरखावी बतायवा इच्छं छं. घणीखरी यायतोमा १५. 'तेण मोडेथी (लोकोए भोजन करी लीधर्धा बौद्धो पण एज नियमोने अनुसरे छ तथापि तेनो पछी ), भिक्षा माटे जवु जीईए. तथा बीजी वार पण यथावसरे संक्षेपमा सूचना करवामां आवश. ज न जाईए. जैन साधुओ सवारे अगर बपोरे ११. 'संन्यासीए कोई पण प्रकारनो संग्रह भिक्षा अर्थे भ्रमण कर छ. तम करवामां कदाच करवो जोईए नहीं. २ ( गौतम धर्मसूत्र ) जैन तेमनो उद्देश पोताना प्रतिस्पर्धी भिक्षांना समातेमज बौद्ध भिक्षुओने पण एवी कोई पण वस्तु गमना प्रसंगने दूर रखवानो हश. खास कराने तो निषेध करवामां आव्यो के के जेना माटे तेओ दिवसमां एकज वार भिक्षा माटे जाय छे तेने 'आ वस्तु मारी छ' एम कहेवोनो प्र- परंतु एकथी वधारे उपवास करला साधुने दिवसंग आवे.-जुओ जैनोनुं पांच, (अपरिग्रह ) व्रत. समां बे वखत पण जवानी छूट आपेली छ'. जैन भिक्षु वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि जे केटली- १६. (मिष्टान्न माटे ) सर्व लिप्साओनो तेण क वस्तुओ पोतानी पासे हमेशा राखे छे तेने पण त्याग करवो जोईए.' आज बायत जैनोना पांचमा तेओ पोतानी मिल्कतरुप राखता नथी. परंतु महाव्रतना चोथा पेटा वाक्यमां पण विहित करफक्त धर्मक्रियाना आचरण माटे आवश्यक साध- वामां अवेली त उपगंत, भिक्षामां ग्रहण अन नो (धमापकरणो) मानी तनो स्वीकार कर ना नियमात उपरथी १२. ' ब्रह्मचर्य (नु तेणे पालन कर, जोईए) आज आशय तारवो शकाय छे. बौधायननी माफक जैनोनुं पण आ चो) महावत १७.गणे पोतानी वाणी, दृष्टि ( अने) कर्मों छ. बौद्धो एने पांचमुं व्रत माने छे. उपर अंकुश राखयो जाईए.' आ बाबत जनोनी १३. 'वर्षाऋतु दरम्यान तेणे एकज स्थळे प्रण गुप्तिओ, अर्थात् मन, वाणी, अने कायानां संयवास करवा जोईए आ सूत्र उपरनी पोतानी मननी साथे लगभग एक भाव धारण करे छे. टिप्पणीमां बुहलर लखे छ केः- आ नियम उपरथी १८. 'तेणे नग्नताने ढांकवा खातर वस्त्र पहेरंq. एम सूचित थाय छे के बौद्धो तथा जन्नोना व स्सो वस्त्रोना संबंधमां जैनोना नियमो आटला बधा (वर्षावास) पण ब्राह्मणोना ( आ व्रतना) अनुक- सादा नथी; तेआ पोताना यतिने नग्न रहेवा माटे रणरूपे छे. छूट आपे छ तेमज एक, बे तथा ऋण सुधी वस्त्रो १४. मात्र भिक्षा लेवाने अर्थेज तेणे गाममां वापरवानी पण छूट आपे छे. परंतु सशक्त अने प्रवेश करवो जोईए.' आ बाबतमां जैनो आटला युवान साधुन नियमपूर्वक एकज वस्त्र वापरवानु बधा सख्त नथी. तेओ साधुने गाम अगर नगरमां विधान करेलु छे. महावीर तो नग्नज रह्या हताः सुवानी पण छट आपे छे. तथापि घणा लांबा वखत अने तेथी बने तेटलं तेमनुं अनुकरण करवामां सुधी रहेवानो तो तेमने पण निषेधज करेलो छे. १ कल्पसूत्र, जिनचरित्र, ११९. १ जुओ, बुहलरनु भाषांतर, Sacred Books of२ बौधायन, २, ६, १२, २२. the East, Vol. II, pp. 191, 192. अहीं आपेला ३ कल्पसूत्र सामाचारी, २०. अंको गौतमना त्रीजा अध्यायना सूत्रोने अनुसरीने छे; ४ आचारांग सूत्र, २, १५,५,६ १५. बौधायननां तेने मळतां सूत्रो टिप्पणीमा सूचवेलां छे. ५ कल्पसूत्र, जिनचरित्र ११८. २ सरखाबा, बौधायन २, ६, ११, १६. ६ बौधायन, I. c. १६. ४. ३. बौधायन २, ६, ११, २.. ७ आचारांग सूत्र २, ५, १, १. ४. आचारांग सूत्र २, २, २, ६. • कल्पसूत्र, जिनचरित्र ११७. Aho! Shrutgyanam

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