Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 251
________________ अंक २ ] अथवा राज्यनीतिकुशल कहो गमे ते कहो परंतु असाधारण व्यक्तित्ववाळा बादशाहने जे रीते ए त्यागी जैनाचार्ये पोताना धर्मनो प्रभावोत्पादक बोध आप्यो हतो, अने ते बोधने सांभळी जे रीते ते दयाळु बादशाह जैनधर्म प्रति पोतानी सविशेष प्रीति प्रकट करी हती, तेनो संक्षिप्त पण सारभूत इतिहास अमे अमारा कृपारसकोष नामना पुस्त कनी लांबी प्रस्तावनामां (जे हिन्दी भाषामां लखा एली छे ) आज थी ४-५ वर्ष अगाउ आप्यो हतो. ते प्रस्तावना लखती वखते ज अमारा मनमां एवो संकल्प थमो हतो के प्रसंग मळे, हीरविजयसूरिना जीवन संबन्धमां मळी आवतां सघळां साधनोने एकत्र करी, ते उपरथी एक सविस्तर जीवन चरित्र ए महान् जैनयतिनुं अवश्य तैयार करवं जोईए प्रस्तुत पुस्तक जोईने अमने आनंद थाय छे के अमारो ए शुभ संकल्प, अमारा एक योग्य मुनि बंधुना साथे उत्तमरीते पूर्ण थयो छे. साहित्य समालोचन हीरविजयसूरिनुं आसन जग धर्मगुरुओमां एक उच्च स्थान भोगवे छे. अकबर जेवा महाबुद्धिवान् व्यवहारचतुर, गूढहृदयी, सूक्ष्मदर्शी अने राजनीतिकुशल सम्राट्ना अंतःकरणमां, तेना देश, जाति, धर्म, स्वभाव, अने ध्येयथी तद्दन विरुद्ध संस्कारवाळा धर्मगुरुनो विरक्तिप्रबोधक धर्मबोध अनायासे उच्चस्थान मेळवे ए एक जग त्ना इतिहासमा आश्चर्यजनक नोंध गणावी जोईए. ९९ सुधां करी नथी. युरोपना विद्वानो तो विदेशी होवाथी कदाच ए बाबातमां ओछा उपालंभने पात्र होई शके परंतु भारतना पुरातत्त्वज्ञोनी ए विषयक उपेक्षा तो खरेखर अक्षम्य ज गणी शकाय. युरोपना केटलाक विद्वानाने अकबरनी विविध र स्पर विरुद्ध एवी जीवनवार्ताओमां क्रिश्चियन ध भनी असरना स्वप्न आववां लाग्यां अने तेमनां स्वप्रस्मरणोने अमारा देशबंधु विद्वानो यथार्थरूपे पण मानवा अने कहवा लाग्या; परंतु कोईना मनमां ए विचार नथी आव्यो के जैनोना सैकडों लेखोमां अकबरनी जे आटली बधी प्रशंसा करवामां आवी छे तेनुं शं कारण छे, ए तरफ पण जरा दृष्टि तो नांखी जोईए. अमारा लोकोनी आवीज अनुकरणप्रियता के प्रमादशीलताने जोईने परदेशी विद्वानो जे अमने मौलिकताशून्य अने गंभीरविचारविही ननी कुत्सित उपाधिओधी संबोध्या करे छे तेमां केटलेक अंशे सत्य अवश्य छे, एम अनिच्छाए मानवानी फरज पडे छे. ए प्रतापी सम्राट्ना, तेनी आसपासनी समग्र परिस्थितिथी अने तेनाखास आनुवंशिक जीवन-संस्का रोथी विरुद्ध जता अनेक विचारो अने आचारो भिन्न भिन्न इतिहासकारोए अनेक स्थळे नोध्या छे, परंतु ते आचार-विचारानं यथार्थ कारण कोई पण लेखके स्पष्टरीते आपलं न होवाथी आधुनिक इतिहासज्ञोप- खास करीने युरोपीय इतिहासज्ञोए-ए विषयमा अनेक तर्क-वितर्को चलाव्या छे अने हजीए चलाये जाय छे. पण कहेतां खेद थाय छे के, जैन साहित्यमां, ए विषयनो खरो खुलासो आपनारा असंख्य पुरावाओ विद्यमान होवा छतां, कोई पण विद्वाने आज सुधीमां ए पुरावाओनी तपास अकबरना] प्रधान मंत्री शेख अबुल फजले आईन-ए-अकबरीमां अकबरना साम्राज्यमांनी प्रधान प्रधान व्यक्तिओनी जे लांबी टीप आपी छे, तेमां, प्रथम श्रेणिमां गणावेला सर्व श्रेष्ठ मनुष्योमां हीरविजय सूरिनुं पण नाम दर्ज छ तेमज पांचमी श्रेणिना मनुष्योनी नामावलीमां ए सूरिना प्रधान शिष्य विजय सेनसूरि अने भानुचंद्र उपाध्यायनां नामो पण आपेलां छे. परंतु आजथी दश वर्ष पहलां कोई पण देशी के विदेशी विद्वाने अबुल फजले नोधेला सर्व श्रेष्ठ मनुष्योमांना एक एवा ए हीरविजयसूरि, तेमज पांचमां वर्गमां आपेला विजयसेनसूरि अने भानुचंद्र नामना पुरुषो कोण छे अने शा कारणथी तेमना नामो आईन-ए-अकबरी जेवा महान् ग्रंथमां नोंधव मां आध्यां छेतेनी तपास करवा माटे परिश्रम कर्यो न हतो. 'हीरावजय सूरि' ए नाम फारसीमां कोई जुदा प्रकाग्नी जोड. णीथी लखवामां आव्युं हशे तेथी आईन-ए-अकबरीना इंग्रेजी अनुवाद कर्ता मी ब्लॉकमेने ते नाम इंग्रेजीमा 'हारजीमूर (Harigi Sur ) ' आवी रीतनी जोडणी करीने आप्युं छे. मी. ब्लॉकमेने आईन - ए. Aho! Shrutgyanam

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