Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 240
________________ ૯૯ जैन साहित्य संशोधक एक मात्र सुधारक समझाता हता. परंतु आमां आश्चर्य उत्पन्न करवावाळी बाबत ए छे के जैनो तेमज बौद्धो बन्ने वर्तमान युगना धर्मप्रवर्तकोनी संख्या लगभग सरखीज माने छे - एटलेके जैनो २४ तीर्थकरो माने छे; अने बौद्धो २५ बुद्धो माने छे. मान्यताना विषयमां हुए वातनी ना नथी पाडी शकतो, के, आमां एक संप्रदायनी बीजा संप्रदाय उपर असर नहीं थई होय. परंतु हुं पटलं तो दृढता पूर्वक कही शकुं छं के आ बन्नेमांना कया धर्मे प्रथम आ मान्यता शोधी कांढी हती; अगर तो सौथी प्रथम कोणे ब्राह्मणो पाथी तेनो स्वीकार कर्यो हतो; तेनो निर्णय करवो कठण छे. कारणके बौद्धोमां जेम, बुद्ध-निर्वाण पछीनी प्रारंभनी ज शताब्दिओमां पचीस बुद्धोनी उपासना दाखल थई हती, तेम चोवीश तीर्थकरोनी मान्यता पण, महावीर निर्वाण बाद धणुं करीने बीजी ज शताब्दिमां जुदा पडेला दिगम्बर तथा श्वेताम्बर ए बन्ने संप्रदायोने सरखी रीते मान्य होवाथी, ते पण तेटली ज जुनी छे. परंतु आ प्रश्ननुं निराकरण करवं ते अहीं कांई महत्त्वनो विषय नथी. कारण के पूर्वकृत विवेचनद्वारा जे निर्णयो उपर आपणे आव्या छीए ते उपर तेनी बिलकुल असर थती नथी. ते निर्णयो एज छे के - ( १ ) जैनधर्म, ए बौद्धधर्मथी तद्दन स्वतंत्र ते उत्पन्न थलो एक प्राचीन धर्म छे; तेनो विकास पण तेटलीज स्वतंत्र रति थलो छ; तेमज मां बौद्ध धर्ममाथी विशेष कांई लेवामां आव्युं नथी. तथा ( २ ) जैनो तेमज बौद्धो ए बन्नेना तत्त्वज्ञान, आचार, नीतिशास्त्र, अने जगदुत्पत्तिशास्त्रनुं मूळ ब्राह्मणो -- खास करीने संन्यासिओने आ भारी छे. अत्यार सुधीनी आपणी सघळी चर्चा जैनोना पवित्र ग्रंथोमांथी उपलब्ध थती परंपरागत कथाओनी प्रामाणिकता उपर ज चालेली छे. परंतु एक अतिशय विशाल ज्ञानवाळा अने कुशल विचारक विद्वाने ए प्रामाणिकताना संबंधमां जशंका करेली छे. ए विद्वान् ते मी. बार्थ (Barth) छे. ते पोताना Revue de Il' Histoire des Religions, Vol. III, p. 90. मां नातपुत्त नामनी एक ऐतिहासिक व्यक्तिनो स्वीकार करे छे खरो, परंतु जैनोना पवि [ भाग १ त्र ग्रंथो, छेक ई० स० नी पांचमी शदीमां, -एटलेके ए संप्रदायनी स्थापना थया पछी लगभग एक हजार जेटलां वर्षो व्यतीत थयां बाद, लखाएला होवाथी तेना आधारे कोई पण सबळ अनुमान करी शकवाना संबंधमां ते मोटी शंका धरावे छे. जैनधर्मना संबंधमां तेनो एवो अभिप्राय छे के ए संप्रदायना, ते प्राचीन काळथी लई पुस्तको लखाता सुधीना समय सुधीना, स्वसंवेदित अने सतत एवा अस्तित्वनो - अर्थात् तेना खास खास सिद्धान्तो भने नौधोनी निरंतर परंपरानो-हजी सुधी निर्णयात्मक रीते निकाल थयो नथी. वळी ते जणावे छे के ' घणी शदीओ सुधी तो जैनो, तेमना जेवा बीजा अनेक संन्यासिवर्गो के जे फक्त अप्रसिद्ध अने अस्थिररूपे पोतानुं जीवन गाळता हता तेओथी भिन्नरूपे ओळखायाज न होता.' तेथी मि. बार्थना अभिप्राय मुजब जैनोनी सांप्रदायिक परंपराओ ते मात्र बौद्ध परंपराओना अनुकरणरूपे, तेमणे पोतानां अस्पष्ट अने अनिश्चित स्मरणोमांथी उपजावी काढेली छे. मि. बार्थनो आ मत एवा अनुमान उपर स्थिर थपलो मालुम पडे छे के जैनो पोतानुं पवित्र ज्ञान एक पेढिथी बीजी पोढने आपवामां घणाज बेदर - कार रहा हता; अने तेम रहेबामां कारण एछे के ते घणी शदीओ सुधी मात्र एक नानो अने अनुपयोगी संप्रदाय हतो. मि. बार्धनी आ दलीलमां हुं कोई प्रकारनं वजन जोई शकतो नथी. हुं अहीं ए प्रश्न पूछे छु के-जे धर्म पोताना थोडाक अनुयायिओ वडे एक मोटा प्रदेश उपर पथराएलो होय ते धर्म पोताना मौलिक सिद्धान्तो अने परंप ओने वधारे सुरक्षित राखी शके छे, के जे धर्मने एक मोटा जनसमूहनी धार्मिक जरूरीआतो पूरी पाडवानी होय छे ते ? आबेमानी कई बाबत वधारे संभावित छे ? जो के एकंदर रतेि आ प्रकारनी हेत्वाभासात्मक तर्कपद्धतिथी आवा प्रश्ननो निर्णय थवो तो अशक्य ज छे. उपर्युक्त बे पक्षोना प्रथम पक्षमां याहुदी तथा पारसीओनुं उदाहरण रज करी शकाय छे अने बीजा पक्षमा रोमन कॅथोलिक धर्मनो दाखलो आपी शकाय छे. परंतु जैनो संबंधी प्रस्तुत प्रश्नना वादविवादनो निर्णय करवामां आवी Aho! Shrutgyanam

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