Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 245
________________ अंक २] डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना आचारांग अने सूत्रकृतांग सूत्रना प्रथम स्कंधोने, उपरथी एम सिद्ध थतुं होय तेम जणाय छे के सिद्धान्तना सौथी प्राचीन भाग तरीके मानु छ. आ प्रकारना अर्वाचीन ग्रंथोनी रचनाना समय अने मारा आ अनुमानना प्रमाण तरीके हुँ आ बे पूर्वे जैनोनी साहित्य विषयक अभिरुचि निश्चित ग्रंथोनी (स्कंधोनी ) शैली बतावीश. सूत्रकृतांग सू- थएली हती. आ सघळी बाबतो उपरथी आपणे त्रनुं आखं प्रथम अध्ययन, वैतालीय वृत्तमां रचा- एवो निर्णय करी शकीए छीए के, जैनोना सौथी एलं छे. आ वृत्त धम्मपद आदि दक्षिणना अन्य प्राचीन साहित्यनी समयमर्यादा पाली साहित्य बौद्ध ग्रंथोमां पण वपराएलो जोवामां आवे छे. अने ललितविस्तराए उभयना रचनाकालनी बच्चे परंतु पालीसूत्रोनां पद्योमा प्रयोजाएलो वैतालीय निश्चित थाय छे. पाली पिटकोन पुस्तकाधिरोहण वृत्त, ते, सूत्रकृतांग सूत्रना पद्योमा मळी आवता (अर्थत् पुस्तकरूपे लखाण) बगामणि जेणे ई. वैतालीय वृत्तनी दृष्टिए जोता, वृत्तना विकास क्र- स. पूर्वे ८८ वर्षे पोतानुं राज्यशासन शरू कंयु हतुं मना प्राचीन स्वरूपनो द्योतक छे आ बाबतमा हुं तेना समयमां थयु हतु. जो के आ समयथी केटलीअहीं वधारे न लखतां. थोडाज समयमा जर्मन क शदीओ पर्वे पण ते पिटको अस्तित्व तो धरावता ओरिअन्टल सोसाइटीना जर्नलमां, ‘वेदनी पछीना हतां ज. आ विषयनी चर्चा करतां छेक्टे प्रो.मेक्सकालना छंदो' ( Tost- Vedie Metres ' ) ए मूलरे नीचे प्रमाणेना विचारो जगाच्या छे 'ते. मथाळा नीचे प्रकट थनारा मारा लेखमां विस्तृतरी- टला माटे, मारा विचार प्रमाणे, अत्यारे तो आपणे ते चर्चवा इच्छु छु. संस्कृत साहित्यना सामान्य बौद्ध सूत्रोना अर्वाचीनमा अर्वाचीन रचना-समय वैतालीय [वृत्तना ] श्लोको, के जेमांना केटलाक तरीके ई. स. पूर्व ३७७ मा वर्षने, निर्णीत करी, ललितविस्तरामा पण मळी आवे छे, तेनी साथे संतोष मानवो जोईए,-के जे समये द्वितीय संगिमुकाबलो करी जोतां, सूत्रकृतांगनो वैतालीय वृत्त ति मळी हती.' त्यार बाद पण ए पाली सूत्रोमां तेथी वधारे प्राचीन रूपनो जणाय छे. पळी ए उमेरा तथा फेरफारो थया होय ए असंभावित बावत पण अहीं लक्ष्यमा लेवा लायक छे के प्राची- नथी. परंतु आपणी प्रस्तुत दलील धम्मपदना कोई मां आर्यावृत्तमां गुंथेलां पद्यो मळी एकाद फकराके भागने आधारे उभी थएलीन होई, आवतां नथी: धम्मपदमां तो ते सर्वथा नथी ज. तेमां तथा अन्य पालीग्रंथोमां मळी आवता वि. तेम अन्य बौद्ध ग्रंथोमां पण तेवां पद्यो मारा जोवा- विध छंदो उपरथी तारवी कढाता छंदःशास्त्रना मां आव्यां नथी. परंतु, आचारांग अने सूत्रकृतांग नियमांना पाया उपर स्थापित करवामां आवे. सूत्रोमां तो एक एक संपूर्ण अध्ययन आर्यावृत्तमां ली छे. तेथी, ए ग्रंथोमा दाखल थएला उमेरा या लखेलु मळी आवे छे. आ आयोवृत्त, सामान्य फेरफारोथी, अमारा ए निर्णयने-के समस्त जैन [रीते ओळखाता] आर्या वृत्तथी स्पष्ट रीते प्राचीन सिद्धान्त साहित्य ई. स. पूर्वे चोधी शताब्दि बाद तथा तेनो जनक स्वरूप देखाय छे. सामान्य आ- रचाएल छ,-तेने कोई पण प्रकारनी हानि पहोंची र्यावृत्त ते, सिद्धान्तना वधारे अर्वाचीन भागोमां, शकती नथी. तथा प्राकृत अने संस्कृत भाषाना ब्राह्मण आपणे उपर जोई गया के जैनसिद्धान्तनो सौथी ग्रंथोमां अने ललितविस्तरादि जेवा उत्तरना बौद्ध प्राचीन विभाग ललितविस्तारानी गाथाओथी ग्रंथोमां पण नजरे पड़े छे प्राचीन जैनग्रंथोमां अधिक जूनो छे. आ ग्रंथ ( ललितविस्तरा) ना प्रयोजापलो त्रिष्टुभ् छंद पण पाली ग्रंथोमां मळी विषयमा एवं कहेवाय छे के तेनो ई. स. ६५ मां आवता ते छंद करतां अर्वाचीन रूपनो अने ललि- चीनी भाषामा अनुवाद थयो हतो. आ उपरथी तविस्तरामांना करतां प्राचीनरूपनो छे. अंते, ल- वर्तमान जैन साहित्यनी उत्पत्तिनो समय ई. स. लितविस्तरादि ग्रंथोमां जोवामां आवता आ सिवा- ---------- यना बीजा अनेक प्रकारना कृत्रिम वृत्तो-जेमांनो १ Sacred Books of the East, Vol. X, एक पण वृत्त जैनसिद्धान्तमा जडी आवतो नथी- p. XXXIL. Aho! Shrutgyanam

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