Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 214
________________ जैन साहित्य संशोधक [ भाग १ उक्तरीते आ ग्रंथमां ऐतिहासिक वृत्तान्त विशेष न मळवाथी अलबत आपणने असंतोष थाय ए स्वाभाविक छे, परंतु ते विषयमां ग्रंथकार कोई पण प्रकारना उपालंभने पात्र नथी. कारण के ग्रंथना प्रारंभमां ज ते पोते हेमचंद्र अने कुमारपालनी समग्र जीवन-वार्ता लखवाना उद्देश्यनो स्पष्ट अस्वीकार करे छे. आ ग्रंथ लखवामां लेखकनो उद्देश्य, कुमारपालादिनो इतिहास लखवानो नथी. परंतु ते व्यक्तिओने लक्षीने धर्मोपदेश आपतो एक कथा-ग्रंथ गुंथवानो छे. तेभो लखे छेके-" यद्यपि कुमारपाल अने हेमचं. द्राचार्य- जीवन चरित्र बीजी रीतिए पण घणुए मनोहर छे. तोपण हुआ प्रथमांजैन धर्मना प्रतिबोध संबंधे ज काईक कहेवा ईच्छु छु. शं अनेक प्रकारनी खाद्य वस्तुओथी भरपूर रसवतीमांथी पोतानी इच्छानुसार मात्र कोई एक वस्तुनु ज भक्षण करनार पुरुष कोईनी निन्दाने पात्र थई शके छे ?" अस्तु. कुमारपाल प्रतिबोधनो ऐतिहासिक सार - आ संपूर्ण ग्रंथमां जेटलो भाग इतिहास साथे संबंध धरावे छे ते वाचकोना सौकर्यार्थ "कुमारपाल प्रतिबोध-संक्षेप' एवा शिरोलेख नीचे परिशिष्ट रूपे जुदो आप्यो छे. ए परिशिष्टात्मक ग्रंथभाग यांची जवाथी आखा ग्रंथनो संकलित सार स्पष्टरीते समजाई जशे. संक्षिप्त ऐतिहासिकसार आ प्रमाणे छः-- __ अणहिलपुर पाटणमां, प्रथम चौलुक्यकुलमृगांक एवो मूल नामे राजा थयो. तेना पछी चामुंडराज अने तेना पछी 'जगझंपण' एवं उपनाम प्राप्त करनार वल्लभराज थयो. तेना पछी अनुक्रमे दुर्लभराज, भीमराज, कर्णदेव अने जयसिंहदेव राजा थयो. पूर्वे थई गएला भीमदेवनो क्षेमराज करीने एक पुत्र हतो, तेनो पुत्र देवप्रसाद, तेनो पुत्र त्रिभुवनपाल अने तेनो पुत्र कुमारपाल थयो. ए कुमारपाल बहु शूर, वीर, धीर, त्यागी, दक्ष अने परोपकारादि गुणवाळो हतो. तेथी जयसिंहदेवनुं मृत्यु थया पछी प्रधानपुरुषोए परस्पर विचार करीने तेनी गादी उपर कुमारपालने बेसार्यो. तेणे चारे दिशाओमां चतुरंग सैन्य साथे दिग्विजय करी प्रजाने संतोषकारक थाय तेवी रीते राज्यनुं पालन करवा मांडयु. एक दिवसे तेणे केटलाक विद्वान् अने वृद्ध ब्राह्मणोने पोतानी पासे बोलावीने का के-'जेना आचरणथी मनुष्य जन्मनुं सार्थक थाय तेवो सत्य धर्म मार्ग बतावो.' ब्राह्मणोए वेदादिशास्त्र विहित यज्ञयाग स्वरूप धर्म बताव्यो. परंतु ते धर्ममां पशु-प्राणी आदिनो वध विहित होवाथी तेवो हिंसामय धर्म राजाने रुच्यो नहीं. ते मनमा विचार करवा लाग्यो के-'जो प्राणिओनो वध करवाथी पण मनुष्यने धर्म प्राप्ति थती होय तो पछी अधर्म कयुं कर्तव्य करवाथी थाय छे ? शं ब्राह्मणो धर्मनुं सत्य स्वरू न जाणता नथी? अथवा तो जाणता छता पण मारी विप्रतारणा करे छ?' आवी रीते आसंबंधमां ते विशेष चिंतन करवा लाग्यो अने तेना योगे रात्रिना समये ते निद्रा पण पूरी प्राप्त करी शकतो नहीं. एक समये बाहड नामना अमात्ये आवीने राजाने नमन कर्यु अने कह्यु के-'राजन् ! तमने जो धर्माधर्मः ना स्वरूपने जाणवानी जिज्ञासा होय तो हुँ कहुं ते सांभळो.' एम कही बाहड मंत्रीए जैनाचार्य हेमचंद्र सूरिनो संक्षिप्त परिचय आप्यो. मंत्रिए जणाब्यु के-पूर्वे, पूर्णतल्लनामना गच्छमां श्रीदत्तसूरि नामे एक आचार्य थई गया. तेओ परिभ्रमण करता एक वखते वागडदेशना' रयणपुर ' नामना गाममां गया. त्यां ते वखते यशोभट करीने एक राजा राज्य करतो हतो. ते श्रीदत्तसूरिपासे आवी हमेशां धर्मबोध सांभळवा लाग्योदत्तसरि त्यां केटलोक समय रही अन्यत्र चाल्या गया. पाछळथी ते राजाने संसार उपर विरक्ति थई आवी अने तेथी ते बधो राज्यभार छोडी दत्तसूरिपासे दीक्षा लेवा निकळी पडयो. सूरि ते समये जइ वि चरियं इमाणं मणोहरं अत्थि बहुयमन्नं पि । तहवि जिणधम्म-पडिबाहे-बंधुरं कि पि जंपेमि ॥ बहु भक्ख-जुयाइ वि रसवईए मज्झाओ किंचि भुंजतो । निय-इच्छा-अणुरुवं पुरिसो किं होइ वयणिज्जो ॥ Aho! Shrutgyanam

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