Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 223
________________ डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना अंक २] लिए 'एटले वैशालिक एवं नाम आपले छे, तेथी पण पुष्टि मळे छे. ते स्थळे, टीकाकारे आ शब्दनो अर्थ बे भिन्न भिन्न रीतिए समजाव्यो छे; अने बीजे एक स्थळे त्रीजो अर्थ पण आपलो छे. आ प्रमाणे मी आवतो अर्थविरोध, एम साबीत करे छे के वैशालिको खरो अर्थ शो करवो ते संबंधी स्पष्ट संप्रदाय नहीं मळी आव्यो हशे अने तेथी, अर्वाचीन जैन विद्वानानां कृत्रिम अर्थबोधनो तरफ आपणे दुर्लक्ष आप उचित छे. वैशालिक शब्दनो स्पष्टार्थ 'वैशाली निवासी' एवो थाय छे अने कुण्डग्राम वैशालीं परूं होवाथी महावीरनं ते नाम वास्तविक गणी शकाय छे:-जेम टर्नहामग्रीननो रहेवाशी लण्डनर (Londoner) तरीके ओळखाय छे तेम. ज्यारे आ प्रमाणे कुण्डग्राम वैशालीने एक परू मात्र हतु, त्यारे ए पण स्पष्टज छे के ते गामनो राजा पण वधारेमा वधारे एक नानो सरदारज होवो जोईए. जो के जैनो पोताना अनुरागाधिक्यने लईने, सिद्धार्थ एक खरेखर प्रबळ राजा हतो एम कल्पी तेनी राजलक्ष्मीनो घणांज देदीप्यमान अने आदर्शभूत वर्णोमां चितार आपे छे खरा; परंतु मनां वर्णनामाथी अलंकारोनां आभरणो उतारी लीधां पछी ए सत्य सहेलाईथी प्रकट थई जाय छे के सिद्धार्थ एक मोटो राजा नहीं पण मात्र अमीर हतो. अने ते आ प्रमाणेः - सिद्धार्थने अनेक स्थळे मात्र क्षत्रियज कहेलो छे, तथा तेनी पत्नी जेनुं नाम त्रिशला हतु, तेने पण हमेशां क्षत्रियाणी तरीकेज वर्णवेली छे. ज्यां सुधी मने स्मरण छे, तेने देवी तरीके क्यांए लखी नथी. तेमज ज्ञात्रिक क्षत्रियो पण दरेक स्थळे तेओ सिद्धार्थना समान पदवाळा होय तेवी रीते वर्णवामां आव्या छे नहीं के तेना (सिद्धार्थना ) सामंतो अगर ताबेदारो तरीके. आ हकीकत उपरथी एम मालुम पडे छे, के सिद्धार्थ राजा न हतो, तेम ते पोतानी जातिनो नेता पण न हतो; परंतु, पूर्वी देशोमांना जमीनदारो अने तेमां पण खास करीने देशना प्रतिष्ठित उमरावो जेटली सत्ता भोगवे छे तेटली सत्ता धरावनारो ते एक क्षत्रिय हतो. छतां पण ते तेनी साथेना अन्य सरदारो करता वधारे लागवगंवाळो हतो, एम कही ७१ शकाय छे आम कहेवानुं कारण एछे के, ते पोताना लग्न संबंधना लीधे मोटा मोटा माणसा साथ संबंध धरावतो हतो, तेवा उल्लेखो मळी आवे छे. तेनी स्त्री त्रिशला ते वैशालींना राजा चेटकनी बहन हती. अने आ विदेहना राजवंशमां उत्पन्न थवाथीम ते वैदेही अगर विदेहदत्तां कहेवाती हती. मारा यत्किचित जाणवा प्रमाणे बौद्ध ग्रंथोमां वैशालीना राजा चेटकनो उल्लेख थपलो नथी. परंतु ते ग्रंथोमां एवी हकीकत तो वांचवामां आवे छे के वैशालनुिं राज्यशासन एक अमीर मंडळने सोपवामां आव्युं हतुं अने ते मंडळनो अध्यक्ष एक राजा हतो. राज्यमां अन्य सत्ताधारी तरीके मात्र एक राजप्रतिनिधि (Viceroy ) अने बीजो सेनापति हतो. लिच्छविओना आ अजायबी भरेला राज्यतं अनी झांखी जैन ग्रंथोमां पण आपणने थई शके छे. निरयावली सूत्रमां एक वर्णन छे के ज्यारे चम्पाना राजा कूणिक उर्फे अजातशत्रुए चेटक राजा उपर मोटी सेना लई हमलो करवानी तैयारी करी, त्यारे चेटक राजाए काशी, कोशल, लिच्छविओ अने मल्लकिओना १८ संयुक्त राजाओने एकत्र करी, तेमने पूछथुं के तमारो अभिप्राय कूणिकनी मागणीओने पूरी करवानो छे के तेनी साथे युद्ध करवानो छे ? आ सिवाय एक एवो पण उल्लेख मळी आवे छे के, महावीरना निर्वाण वखते, आ १८ राजाओए ते प्रसंगनी यादगीरी माटे एक उत्सव उजववानो ठराव कर्यो हतो. परंतु, आ ठेकाणे चेटकनों, के जेने ए सर्वे राजाओनो महाराजा तरके बताववामां आवे छे तेनो, पृथक् नामनिर्देश थपलो नथी. आधी संभावित छे के चेटक १ जुओ कल्पसूत्रांनी मारी आवृत्ति, पृ. ११३. अहीं चेटकने महावीरना मामा तरीके जणावेलो छे. २ जुओ कल्पसूत्र, जिनचारेत्र, ११०; आचारांग २, १५, १५. Turnour in the Journal of the Royal Asiatic Society of Bengal, VII, p. 992. Ed. Warren, p. 27. ५ जुओ कल्पसूत्र, जिनचरित्रो. Aho! Shrutgyanam

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