Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 197
________________ अक २] जेसलमेरके पटवों के संघका वर्णन १२१ दुहाअठारसे छन्दुवे जेठमास सुदि दोय । लेख लिख्यो अति चुपसुं भवियण वांचो जोय ॥ १ ॥ सकल सुरि शिर मुगटमणि श्रीजिनमहेंद्रसुरिंद । चरणकमल तिनके सदा सेवे भिंवियण वृंद ॥२॥ कीनो आग्रहथकी जेसलमेरु चोमास । संघ सहु भक्ति करे चढते चित्त उल्लास ॥ ३ ॥ ताकी आज्ञा पाय करि धरि दिलमें आणंद । ज्यं थी त्यं रचना रची मुनि केसरीचंद ॥५॥ भुलो जो परमादमें अक्षर घटही बाध । लिखत खट आइ हुवे, सो खमीयो अपराध ॥ ५ ॥ ॥ इति प्रशस्ति सम्पूर्णम् ॥ इस संघके निकालनेवालेके वंशज आज भी इस कुटुंबने संवत् १९२८ में, जेसलमेरमें जो मौजूद हैं और मालवाके रतलाम वगैरह शहरोंमें एक बड़ा भारी प्रतिष्ठामहोत्सव किया था उसका उनकी बडी बडी दुकानें चलती हैं । इस संघके लेख भी उपर्युक्त लेखवाले मंदिर में लगा हुआ है । जैसा बडा संघ, इसके बाद जैन समाजमेसें फिर यह लेख कुछ संस्कृत और कुछ मारवाडी भाषामें कोई नहीं निकला और शायद अब कोई निकाले है। संग्रहकी दृष्टिसे इस लेखको भी यहांपर प्रकट वैसी आशा भी नहीं है। कर दिया जाता है। " स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात् सम्बत् १९२८ शालीवाहनकृत शाके १७९३ प्रवर्तमाने मासोतममासे माघमासे धवलपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री श्री १००८ श्री वैरीशालजी विजयराज्ये श्रीमज्जेसलमेरुवास्तव्य ओसवंशे बाफना गोत्रीय संघवी सेठ गुमानचंदजी तत्पुत्र प्रतापचन्द्रजी तत्पुत्र हिमतरामजी जेठमलजी नथमलजी सागरमलजी उमेदमलजी तत्परिवार मूलचंद सगतमल केसरीमल रिषभदास मांगीदास भगवानदास भीखचंद चिंतामणदास लुणकिरण मनालाल कन्नैयालाल सपरिवारयुतेन आत्मपरकल्याणार्थ श्रीसमक्त्योद्दीपनार्थ च श्री जेसलमेरुनगरसत्क अमरसागरसमीपवतिनि समीचीनाऽऽरामस्थाने श्रीरिषभदेवजिनमंदिरं नवीन कारापितं तत्र श्री आदिनाथ बिंबं प्राचीन बृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीजिनमहेन्द्रसूरि पदपंकजसेबिना बृहरखरतरगणाधीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन श्रीजिनमुक्तसरीणां विधिपूर्वमहता महोत्सवेन शोभनलग्ने श्रीमूलनायकचैत्ये स्थापितं । पुनः अनेक विधानामंजनशिलाका कारिता । पुनर्दुतीयभुमिप्रासादे स्वप्रतिष्ठित श्री पार्श्वनाथबिंब मुलनायकस्थापितं पुनीश विहरमान प्रतिष्ठा कृतं मंदिरस्य दक्षिणपार्श्वे दादासाहिब कुशलसूरि गुरुमूर्ति स्थापनकृता । तथाच जिनदत्तसूरि कुशल सूरि चरणपादुका पुनरपि श्रीजिनहर्षसरि महेन्द्रसूरि चरणपादुका स्थापिता। भाई सवाईरामजीके घरका आया । रतलामसुं चि० सोभागमल चांदमल सौभाग्यमलकी माजी वगेरे आया । उदेपुरसुं चि० सिरदारमल तथा इणारी माजी वगेरे आया । ओर Aho! Shrutgyanam

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