Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 104
________________ जैन साहित्य संशोधक. [भाग, १-विनयविजयजीकृत सुबोधिका. सं. १६९६. पोताना सारांशो ( Abstracts ) तैयार करवामां आ टीकानें ग्रंथपरिमाण ५४०० छे. आनी जे आ प्रतिनो उपयोग कर्यो हतो. प्रति में वापरी छे ते मुंबईना संग्रहनी छे. में तपासेला अने केटलेक प्रसंगे उपयोगमां २-धर्मसागरकृत किरणावली उर्फे व्याख्यानपद्ध- लीधेला एवा उपरोक्त ग्रंथो उपरांत नीचेना ग्रंथो ति. संवत् १६२८. ग्रंथसंख्या, ७०००. मंबई. पण अहिंयां उल्लिखित करवा योग्य धारूं छं. ७-विजयतिलकनी कल्पदीपिका.सं. १६८१ ३-समयसुंदरकृत कल्पलता. आमां साल आ.. पेली नथी. पण लेखक कहे छे के तेना गुरु, सकल . ग्रंथसंख्या. ४५००.डॉ० बुल्हरनी आ टीकानी चंद्रना गुरु, जिनचंद्र अकबरना वखतमा विद्यमान हता. . प्रति में जोई छे. आ उपरथी तेमना समयनु अनुमान करी शकाय . ८-यशोविजयनो शाखाबध (?). डॉ० स्टीतेम छे. आ कल्पलता ते, जेना उपोदधातन वन्सने पोताना कल्पसूत्रनी प्रस्तावनाना नवमा पृष्ठ डॉ. स्टीवन्सन भाषान्तर कर्यानो ढोंग करे छे, ते पर उपर आनो निर्देश करेलो छे. कल्पलता नथी. आ कल्पलतानी एक प्रति डॉ. ९-कल्पसूत्रटीका. जुओ, डॉ० बुल्हरनो बुल्हरे कृपा करीने मने वापरवा आपी हती. तेनी संस्कृत हस्तलिखित पुस्तकोनी शोधनो रीपोर्ट. ग्रंथसंख्या मूळ अने टीका बन्नेनी मळीने ७७०. १८७२-७३. छे. तेना उपर मिति संवत् १६९९ नी छे. १०-बार्लिनना संग्रहनी एक ननामी टीकानी __ आ टीकाओथी वधारे अर्वाचीन अने एनाथी से . प्रति. (प्रति अथवा पत्र. ६३८.) आ प्रति एनाथा तद्दन बेपरवाईथी लखेली छे अने ते मने कोई रीते , अल्प महत्त्वना ग्रंथो नीचे प्रमाणे छे.---- उपयोगी निवडी नथी. संवत् १७५९. . ४-लक्ष्मीवल्लभकृत कल्पद्रुम. आमां दरेक सूत्रनी टिप्पणमां में मात्र संदेहविषौषधिमाथी उतारा पाछळ तेनुं संस्कृत भाषांतर आपलं छे. आ ग्रंथनो आप्या छे. पहेलां में सुबोधिका अने किरणावालीमोटो भाग अन्य टीकाओमां उपलब्ध थती कथाओ- मांथी उतारा कर्या हता, परंतु मने संदेहविषौषधि नो बनेलो छे. आ टीकाने अंते कालिकाचार्यनी मळवाथी, सौथी प्राचीन टीकाकारना शब्दोमांज कथा पण उमेरेली छे. मारी पासे कल्पद्रुमनी एक समजुती आपवानुं में वधारे योग्य धार्यु छे. हस्तलिखित प्रति छे. पण ते खराब भने अर्वाचीन कल्पसूत्रनु एक अंग्रेजी भाषान्तर रे० डॉ० स्टीछे. सं० १९०३. वन्सने प्रकट कर्य छे'. जैनग्रंथोमां आज सुधीमां ५-मळनी बब्बे पंक्तिओ बच्चे आपेला भाषान्तर प्रमाण गणातुं मात्र आ एकज पुस्तक प्रकट थएलु रूप एक ननामा लेखकनो टबो. कथासमह अने छे. परंतु मारे दिलगीरीसाथे लखवू पडे छे के ते स्वप्नोनं गुजराती स्पष्टीकरण तेनां योग्यस्थळे दा- मात्र यथार्थ नथी एटलुंज नहीं पण ते अविश्वस- ... खल करेलां छे. आ आवृत्तिमां में तेने C निशा- नीय पण छे. जो के ए एक भाषान्तर गणाय छ नीथी दाखव्यो छे. आना लेखक अभयसुंदर मुनि १ 'कल्पसूत्र अने नवतस्व.' आ बन्ने ग्रंथो जैन धर्म अने हता (कदाच ते कर्ता पण होई शके १ ). सं- तत्त्वज्ञान विषयना छे, अने मागधी भाषामांथी भाषान्तरित वत् १७६१. करेला छे. आमा एक परिशिष्ट आपवामां आव्युं छे, अने ६-कथादि रहित एक टबो. आ प्रति इन्डिआ तेनी अंदर मूळग्रंथनी भाषा उपर विवेचन करेलुं छे. भाषा न्तरकर्ता रे.जे.स्टीवन्सन. डी. डी.वी. पी. आर. ए. एस. ऑफिस लाइब्रेरीनी नं. १५९९ नी छे. कोलके सन Here Aho I Shrutgyanam

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