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जैन साहित्य संशोधक.
प्रयत्नथी संतुष्ट थई, मुंबईनी सरकारे पोताना कब - जामांजे, डेक्कन कॉलेजमा संरक्षित जुनां हस्तलिखित पुस्तकोनो सुप्रसिद्ध अमूल्य संग्रह हतो, ते आ संस्थाने स्वाधीन करी, आ कार्यमा प्रशंसनीय उदारता अने मायालु सहानुभूति देखाडी छे. तेवी ज रीते डॉ. सर रामकृष्णपंते पण पोताना लांबा अने मानभरेला जीवनमा संगृहीत करेला विविध भाषा भने विविध जातनां पुस्तकोनो मोटो भंडार, ए संस्थाने अर्पण करी, ए बाबतनी संस्थानी प्रधान आवश्य कताने केटलेक अंशे पूर्ण करी छे.
दानवीर पारसी गृहस्थ ताताबन्धुओए, आ सं. स्थाने सौथी प्रथम एक सारा प्रमाणमां आर्थिक मदत करी आ कार्यने प्रारंभिक गती आपी, धीमी चाले, पण मक्कम पणे चालतुं कर्तुं छे. ताताबन्धुओनादानथी संस्थानुं प्रथम मकान बांधवामां आव्युं छे, अने तेनु नाम 'ताता रीसर्च हॉल' एवं राखवामां आव्युं छे. उपर जणावेला बधां पुस्तको हाल तुरतमां ए हॉलमां ज स्थापन करेला छे. ता. ६, जुलाई, १९१७ ना दिवसे मुंबईना माजी गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डनना हाथ ए संस्थानो उद्घाटन समारंभ करवामां आव्यो हतो.
[भाग १ आटली मोटी संख्यामां जैन ग्रंथो दुनियानी बीजी कोई लाईब्रेरीमां नथी. आ कारणथी, ए पुस्तकोना उत्तम निमित्ते जैन समाज तरफथी हार्दिक सहानुभूति अने आर्थिक सहायता मळे एवी इच्छा थी, आ संस्थाना निःस्वार्थ कार्यवाहक मुंबईना केटलाक आपणा जैन भाईओने मळ्या अने तेमनी साथे आ संबन्धमा केटलीक वातचीत करी, जैन समाजना विशेष परिचयमां आववा तेमणे प्रयत्न कर्यो. ए प्रयत्ननो परिणाम केम अने केवो आव्यो तेनो टूक अहेवाल, या संस्था तरफथी छेला जुलाई महिनामा बहार पडेला ' एनाल्स ऑफ धी भाण्डारकर ओ. री. इन्स्टीट्यूट' ना प्रथम अंकमां आपला वर्किंग कमीटीना रिपोर्टना ५३ मां पान उपर नीचे प्रमाणे आपेलो छे.
• डेक्कन कॉलेजमांथी आ संस्थानी स्वाधीनतामां आवेला हस्तलिखित पुस्तकोना महान् अने अमूल्य संग्रहमां जैन पुस्तकोनी संख्या घणी मोटी अने घणी किंमती छे. एमां ६०० जेटला ग्रंथो ताडपत्र उपर लखेला छे अने लगभग ६००० जेढला कागळ उपर लखेला छे. ए ग्रंथोमां केटलाक तो एवा अपूर्व छे के जेनी बीजी नकल अन्यत्र क्यांए जोवामां आवती नथी. पाटण, खंभात, जेसलमेर, बीकानेर, आदि स्थळामां जे जैनोना जुना पुस्तक भंडारो हता तेमांथी आधां पुस्तको सरकारे म्होंमांग्या पैसा आपीने खरीद कर्यो छे; अने आवी ते लाखो रुपिआना पुस्तको ए संग्रहमां संगृहीत थएलां छे.
Institute's name well-known in Bom -
The opening of the Institute by His Excellency had already made the bay and elsewhere, and the Secretaries lost no time in availing themselves of this opportunity. They approached and especially the leaders of the Jain some of the big merchants of Bombay community. After repeated visits to Bombay and interviews with various persons, it was possible to arrange for a meeting of the Jain community_in February 1918 under the presidentship Godiji Maharaja's Upas'raya on 17th of Pravartaka Kantivijayaji Maharaja. Dr. Belvalkar and Dr. Sirdesai spoke there on behalf of the Institute, explaJain community to do their own share ining its objects and calling upon the for the cause, which by reason of the fact that the Deccan College MSS. works, had a special claim upon them. Library was specially rich in Jain Shet Gulabchand Devchand and others also made appropriate speeches. And a committee was appointed to subscriptions from the leaders of the
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Aho! Shrutgyanam