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पूजा-विभाग
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अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमज्जिनेन्द्राय वस्त्रं यजामहे स्वाहा ||१०|| वस्त्र चढ़ावे |
अर्थ - जिस प्रकार इन्द्र ने सुमेरु पर्वत के शिखर के ऊपर आसन पर स्थित जिनेन्द्र भगवान् को स्नान कराने के पश्चात् दही, अक्षत, गन्धादिक के द्वारा पूजन करके पीछे वस्त्र से पूजा की थी उसी प्रकार यह श्रावक वर्ग सदा अपनी शक्ति, भक्ति एवं आदर के साथ वीतराग निरंजन तथा अजात शत्रु त्रिलोक के स्वामी जिनेन्द्र भगवान् की पूजा अपनी तथा अन्यान्य मनुष्यों की मुक्ति एवं क्लेश क्षय की कामना से करें । नमक* उतारण पूजा
अह पड़ि भग्गापसरं, पयाहिणं सुणिवयं करिऊणं । पड़इ सलूणतण लज्जियंच, लहू अवहरति ॥ १ ॥ पिक्खेविणं सुह जिण वरह दीहर नयण सलूण । न्हाचइ गुरु मच्छह भरिय, जलग पइस्सईलूण ||२|| लूण उतारिह जिणवरह, तिष्णि पयाहिणि देव । तड़ तड़ शब्द करंतिये, विज्जाविज्जजलेण ॥३॥ जं जेण विज्जव थुई, जलेण तं तहइ अत्यसद्दस्स | जिनरूपा मच्छरेणवि, फुट्टइ लूणं तड़ तड़स्स ||४|| नमक उतारे |
॥ गाथा ||
सव्ववि सुणिवइ जलविजल, तंतह भ्रमणइ पास । अहवि कयंतस्स णिम्मलओ, णिग्गुण बुद्धि पयास ||५|| जलण अणें विणु जलणिहि पास, भरवि कज्जल भावहि पास । तिष्णि पयाहिणि दिण्णिय पास, जिम जिय छुटइ भव दुहपास ||६|| जल णिम्मल कर कमलहि लेचिणुं, सुरवर भावहि : मुनिवई सेवणुं । पभणई जिणवर तुहपइ सरणं, भय तुइ लग्भइ सिद्धि गमणं ||७|| नमक जलमें गेरे ।
पुष्पमाला पहरावण पूजा
उष्णय पयय भत्तरस, नियठाणं संठिय कुणंतरस | जिण पासे भमिय जणस्स, पिच्छनुह हुयवहे पड़णं ॥ १॥ सव्वी जिणप्पभावो, सरिसा सरिसेसु जेण रचंति सव्वण्णूण अपासे, जड़स्स भ्रमणं ण संकमणं ॥२॥ अच्चंत
छह पट भगवान् पर नमक उतार कर अग्नि में गेरे ।
" या पट नमक जल मे गंरे ।