Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 730
________________ [ २४ ] एवं उससे तेरी वह शक्ति नष्ट हो जायगी जो सहाय्य पाकर कभी न कभी तुझे लक्ष्य की ओर अग्रसर करेगी। इसी तरह मिथ्या भापण भी भयङ्कर पाप है-आत्म विनाश का प्रधान कारण हैं। इसलिये जो कुछ बोलना हो सचाई के साथ बोल। कहा है -“सत्यपूतं वदे द्वाक्यम्' अर्थात् सत्य से पवित्र वाक्य बोले। सत्य भाषण आत्मोद्धार का सफल सहायक और आत्मस्थ दोषों को प्रकट कर उनसे मुंह मोड़ लेने के लिये विवश कर देता है। हे आत्मन् । यद्यपि तू निरीह, निस्पाप, नित्यशुद्ध, बुद्ध, अविनाशी अयोगी इत्यादि उपाधियों से विभूषित है, इसलिये कोई तेरा कुछ बना बिगाड़ नहीं सकता है, फिर भी अष्ट कर्म रूपी स्वाभाविक शत्रुओं के फन्दे में फंस कर अपने स्वरूप को छोड़कर पर स्वरूप में रमण कर रहा है, जिसका नतीजा यह हुआ कि निकट भवी से दूर भवी और अभवी तक पहुंच गया है यही कारण है कि संसार का प्राङ्गण वहुत लम्बा चौड़ा मालूम होता है। परन्तु अपने सच्चे स्वरूप को पाने के लिये तुझे शुद्ध श्रद्धा की आवश्यकता है। जब तक तुझे सच्ची श्रद्धा नहीं आती है तब तक निर्वाण पद बहुत दूर है ! कहा है-"सद्धा परम दुलहा" श्रद्धा बड़ी दुर्लभ है। श्रद्धा के बिना सम्यक्त नहीं आ सकती और सम्यक्त के बिना आत्म ज्ञान सम्भव नहीं। सस्यक्त के स्वरूप का वर्णन शास्त्र ने यों किया है सघाई जिणेसर भासियाई वयणाइ णण्हा हुंति ।। इय बुद्धि जस्स भणे सम्मत्त निश्चलं तस्स ।। अर्थात् जिनेश्वर देव ने जो वचन अपने मुखार विन्द से कहे है, उन वचनों को विलकुल झूठ न समझने वाली बुद्धि जिस जीव के मन में हो, उसका सम्यक्त निश्चल है। इसलिये अच्छी तरह शोच विचार कर श्रद्धा को हृदय में स्थान दे, श्रद्धा से सम्यक्त का सम्पादन कर। सम्यक्त से आत्म ज्ञान हो जायगा पर यह हमेशा याद रख कि दूसरे की निन्दा विकथा करना महा पाप है, इसलिये दूसरे की निन्दा करना छोड़कर अपनी निन्दा किया कर, जिससे तू दुर्बत और दुराचारों से मुड़ कर अपनी भलाई की राह पकड़ कर अग्रसर हो सकेगा। आतम निन्दा आपनी ज्ञानसार मुनि कीन । जो आतम निन्दा करे सो नर सुगुण प्रवीण ॥१॥ बारह मास पर्वाधिकार चैत्र मास पर्व चैत्र मास में चैत्र सुदि ७ से चैत्र सुदि १५ पर्यंत ये ६ दिन जैन शास्त्रानुसार अति उत्तम माने गये हैं। क्यों कि बारह मास मे छः अट्ठाई महोत्सव आते हैं जिसमें चैत्र और आसोज के दोनों अट्ठाई महोत्सव शाश्वत हैं। चैत्र सुदि अष्टमी से चैत्र सुदि पूनम तक और आसोज सुदि अष्टमी से असोज सुदि पूर्णमाशी तक चारों निकायों के देवता सम्मिलित होकर आठवें नंदीश्वर द्वीप मे जाते है। वहां जिन भगवान् की अष्ट द्रव्य से पूजा रचाते है, मांगलिक, गान, वाद्य एवं नाटक आदि करते है, इस प्रकार अनेक प्रकार की भक्ति करते हुए नवमें दिन अपने अपने स्थानों को चले जाते हैं। तीसरा अट्ठाई महोत्सव आषाढ़ चौमासे की चउदस (१४) से ४२ दिन बीतने पर भादों वदि १२ से भादों सुदि ४ तक आती है। चूंकि इस पर्व में कई दफा चार निकायों के देवता नहीं भी जाते हैं अथवा आगे पीछे जाते हैं इसलिये ये अट्ठाई महोत्सव शाश्वत नहीं है।

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