Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 737
________________ [ ३१ ] गये। इसी अवसर पर सारंग पुर में इन्होंने कुमार पाल उपाध्याय को अन्त समय का अनशन करवा धर्मध्यान कराया जिससे मर कर वह देव हुआ। देवता ने अवधिज्ञान से इनको अपना उपकारी जान इनके पास आया और नमस्कार करके कहने लगा "हे मुनि । आप शीघ्र ही आचार्य होंगे परन्तु कुछ उपयोग रखियेगा आपके सूरि पद के तीन मुहुर्त निकलेंगे प्रथम में मरणांत कष्ट होगा। दूसरे में गच्छ भेद बहुत होंगे। इन कारणों से आप तीसरे मुहुर्त में सूरि पद ग्रहण करें इससे शासन में उन्नति होगी। परन्तु होनहार बलवान् है। संवत् ११६८ वैशाख वदि ६ शनिवार को दूसरेमुहुर्त में ही श्री देव भद्राचार्य द्वारा सूरि पद दिया गया। आप का नाम जिनदत्त सूरि रखा गया। और उन्होंने प्रामानुप्राम विहार करके भव्यात्माओं को प्रतिबोध देना शुरु कर दिया। एकदा गुरु महाराज ने तीन करोड़ माया बीज मंत्र के जाप का अनुष्ठान किया। परन्तु देव ने सूचित कर दिया कि ६४ योगनियां विघ्न उपस्थित करेंगी।सूचना पानेके पश्चात् गुरु महाराजने श्रावकोंसे कहा कि आज व्याख्यान में ६४ स्त्रियां आवेंगी उनके सम्मानार्थ ६४ पट्टे रखो। और फिर उन पट्टों को गुरु महाराज ने मंत्रित कर दिया। जब ६४ योगनियां ६४ स्त्रियों के वेश में आई तब श्रावकों ने उन्हें बड़े सम्मान से बैठाया। व्याख्यान समाप्त होने पर जब उन्होंने उठना चाहा तो वे उठ नहीं सकी, अर्थात् वहीं की वहीं स्तंभित हो गई। ये चमत्कार देख सब आश्चर्य करने लगे। और योगनियों ने नम्र शीस होकर कहा 'महात्मन्, हम तो आपको चलायमान करने आई थीं मगर आपने ही हमको निश्चल कर दिया। अब हम आपके आधीन हैं। भविष्य में हम आपकी आज्ञानुसार काम करेंगी। हमको मुक्त कीजिएगा" छोड़ने के पहले गुरु महाराज ने कहा कि "अब से हमारे परम्परा के आचार्य तथा साधु को कभी दुःख न देना और धोखे में न लेना" योगनियों ने तथास्तु कहा और प्रसन्न होकर सात वर दिये : १ आपका श्रावक तेजस्वी होगा। २ प्रायः निर्धन न होगा। ३ अकाल मृत्यु न होगी। ४ अखंड ब्रह्मचारिणी साध्वी को ऋतु नहीं आवेगा। ५ आपके नाम से बिजली उपसर्ग दूर होंगे। ६ सिंध देश में गया श्रावक धनवंत होगा। ७ चतुर्विध संघ के आपको स्मरण से सब कष्ट दूर होंगे परन्तु इनके साथ २ इतना और विशेष करना होगा तभी सात वरदान सफलीभूत होंगे। १ आपका पट्टधर २००० सूरि मंत्र का जाप करे। २ साधु दो हजार नवकार गुने। ३ श्रावक प्रभात और संध्या को ७ स्मरण पढ़े या सुने। ४ एक नवकार व एक उवसग्गहर ऐसी १०८ वार ३ खीचड़ी की माला गुणे। ५ श्रावक एक मास में २ आयंबिल करे। ६ साधु निरन्तर यथाशक्ति एकासना करे। ७ आचार्य पंचनदी के अधिष्टायकों का साधन करे। ___एकदा अजमेर में श्रावक पाक्षिक प्रतिक्रमण करने लगे। उस समय विजली बड़े वेग से चमकने लगी और सभी श्रावकों का डर से ध्यान भंग होने लगा। उस समय गुरु महाराज ने मंत्र वल से उसको आकर्षित कर अपने पात्र के नीचे दवा दिया। प्रतिक्रमण के बाद उसे छोड़ दिया। छोड़ने पर आवाज आई कि मैं आपके नाम स्मरण करने वाले पर कभी नहीं गिरूंगी! परम कृपालु गुरु महाराज विहार करते वड़ नगर में आये। उस समय उनकी अतुल वैभव और महिमा देख द्वेपियों ने एक मरी हुई गाय को जैन मन्दिर के द्वार पर डाल दिया और गोहत्या का द्वेष लगा कर घबराये हुए श्रावकों की विनती पर उन्होंने एक व्यंतर देव को गौ के अन्दर प्रवेश कराकर उसको जीवित कर द्वेषियों के मंदिर भेज दिया वहां वह गौ मृत होकर शिव लिंग पर गिर पड़ी। फिर वे द्वेप

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