Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 746
________________ [ ४० ] इस तीर्थ में बारह हजार तीन सौ अट्ठावन (१२३५८ ) जिन बिम्ब हैं और चरणों को स्थापना की तो गिनती ही नहीं है। अनंते मुनिराज इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए अतएव जो श्रावक इस पर्व को शुद्ध भावना से आराधना करेंगे वे उत्तरोत्तर सुख और सम्पदा को प्राप्त करेंगे। मागशीर्ष मास पर्वाधिकार मगसिर मास में मार्गशीर्ष सुदि ११ मौन एकादशी पर्व नाम सग्रह इसके गुणने अनंतर दिये गये है। इसी से ये दिन अधिक उत्तम माना जाता है। जैन सिद्धान्तों में इस पर्व की महिमा विस्तृत रूप से लिखी हुई है। २२ वें तथंकर श्री नेमिनाथ जो के समय में एक सुव्रत नाम के सेठ थे। वे बड़े ही योग्य, पवित्र एवं धर्मात्मा थे। एक दिन उन्होंने मार्गशीर्ष वदि ११ को आठ प्रहर का पौषध लिया और चारों प्रकार के आहारों का त्याग कर एवं कहीं भी स्वस्थान छोड़ आने-जाने का नियम लेकर अपने घरमें विराजमान थे। चोरों को भी किसी तरह इस व्रत का पता चल गया। उन्होंने समय पाकर सेठ के सब माल की गठरी बांधी और चलनेको तैयार ही थे कि इतने में धर्मरक्षक शासनदेव प्रगट हुई और उन्हें स्तम्भित कर दिया। प्रातःकाल राजा ने भी आकर ये वार्ता देखी। राजा ने राजनीति के विरुद्ध कार्य देख चोरों को प्राणदण्ड की आज्ञा दी परन्तु उस दयालु ने अपनी धार्मिक दया दिखला कर उन चोरों को मुक्त करवा दिया। इसी तरह एक समय उसी नगर में आग लग गई। सेठजी पौषध ब्रत लेकर घर में ही बैठे थे। केवल सेठ की दूकान एवं घर के अतिरिक्त समस्त नगर जल गया। इससे सहज ही में इस पर्व की महिमा समझ मे आ सकती है। ___इस दिन मौन युक्त उपवास करना चाहिये। अठ पहरी पोसह करके मौन एकादशी का गुणना करना चाहिये। कदाचित् पोसह करने की शक्ति न हो तो देसावगासिक लेकर गुणना करे। ग्यारह वर्ष में ग्यारह उपवास करे अगर अधिक इच्छा हो तो मास में वदि, सुदि की दोनों एकादशी ग्यारह वर्ष और ग्यारह मास करे। इस तपस्या के करते हुए ग्यारह अंगों को शुद्धभाव से सुनें। अगर शक्ति हो तो उनको लिखावे । पढ़नेवालों की सहायता करे। अन्त में यथाशक्ति उद्यापन करे। आगम पूजा करावे । साधर्मीवत्सल करे। इससे सर्वदा सुख की प्राप्ति होगी। एक एक कल्याणक की एक एक माला गुणनी चाहिये । कुल १५० माला गुणनी चाहिये। मौन एकादशी का गुणना जम्बद्वीप भरतक्षेत्र के अतीत २४ जिन पंच कल्याणक नाम ४ श्री महायश सर्वज्ञाय नमः। ६ श्री सर्वानुभूति अर्हते नमः। ६ श्री सर्वानुभूतिनाथाय नमः । ६ श्री सर्वानुभूतिसर्वज्ञाय नमः । ७ श्री श्रीधरनाथाय नमः । जम्बद्वीप भरतक्षेत्रके वर्तमान २४ जिन पंच कल्याणक नाम २१ श्री नमि सर्वज्ञाय नमः । १६ श्री मल्लिअर्हते नमः। १६ श्री मल्लिनाथाय नमः । १६ श्री मल्लि सर्वज्ञाय नमः । १८ श्री अरनाथाय नमः ।। ____ जम्बूद्वीप भरतक्षेत्रके अनागत २४ जिन पंच कल्याणक नाम ४ श्री स्वयंप्रभु सर्वज्ञाय नमः । ६ श्री देवश्रुत अर्हते नमः । ६ श्री देवश्रुत नाथाय नमः । ६ श्री देवश्रुत सवज्ञाय नमः । ७ श्री उदयनाथाय नमः।

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