Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 764
________________ [ ६० ] सोमवार और शनिवार को पूरव में दिशाशूल होता है अतः इस दिन पूर्व में गमन न करना चाहिये। इसी तरह बुध और मंगल को उत्तर दिशा में, रविवार और शुक्र को पश्चिम दिशा की तरफ और वृहस्पतिवार को दक्षिण में दिशाशूल होता है अतः इन दिनों में इन दिशाओं में गमन न करना चाहिये। दिशाशूल वायां अच्छा होता है। एकम व नवमी को पूरव में योगिनी होती है। तीज व एकादशी को अग्निकोण मे योगिनी होती है। अमावस व अष्टमी को ईशानकोण मे योगिनी होती है। दूज व दशमी को उत्तर में योगिनी होती है। पूर्णमाशी व सप्तमी को वायव्यकोण में योगिनी होती है। छट्ठ और चतुर्दशी को पश्चिम में योगिनी होती है। चौथ और वारस को नैऋत्यकोण में योगिनी होती है। पंचमी और तेरस को दक्षिण में योगिनी होती है। बायीं योगिनी सुख देने वाली होती है। पीठ पीछे की योगिनी मनोवांछित फल देने वाली होती है। दाहिनी योगिनी धन का नाश करती है। सन्मुख योगिनी मौत की निशानी है। अतः पिछली दोनों टाल देनी चाहिये। मुहूर्त देखने वालों को इन बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिये। सब दोषों को टाल कर शुभ मुहुर्त निकालना चाहिये। मुहुर्त्त निकालने में सरलता हो अतः संक्षिप्त विवरण दे दिया गया है। दिन का चौघड़िया रात का चौघड़िया अ रो ला | अ। रोला चं | का उ | अ शु) चं का रो | शु | चं| का| उ रो ला शु 4 च का उअ रो 4 अ रो। ला शु ap. चं| का| चं! का| उ अ का! उ ! अ चं का उ का लाश ब 44. का उ अ का चं] उ । अ आशंसा हो सका यदि यह कहीं अज्ञानतम का दीप दारण, एक भी जन जैन यदि इससे हुआ उपकार भाजण। यदि विपथ का पान्थ कोई कर सका निज मार्ग धारण हो सकेगा श्रम सफल इस ग्रन्थ का संकलन कारण ।। ॥समाप्तोऽयं ग्रन्थः ।।

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