Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 763
________________ [ ५६ ] मणियों के नाम सूर्यकान्त मणि। चन्द्रकान्त मणि। इन्द्रनील मणि। पद्मराग मणि। मरकत मणि। सर्प मणि । करकेतक मणि। स्फटिक मणि। वेरुड्या मणि। लसनिया मणि । लाजवदी मणि। पुष्पराग मणि। गोमेदक मणि। मासर मणि। विजना मणि ! प्रत्येक ग्रह की शान्ति के लिये जो रत्न उपयुक्त वताये गये हैं, उन रत्नों को अंगूठी में इस प्रकार जड़ा कर पहनें कि उन रनों का सवदा अंगुली से स्पर्श होता रहे। इसीलिये इनके नाम तथा स्वरूप उपयोगी समझ कर दे दिये गये हैं। नवग्रह सम्बन्धी अन्य उपयोगी बातें तथा नाम सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र. तारे ये पांच ज्योतिष्क देवता है। जो आकाश में पतलाकार परिभ्रमण करते हैं। इस जम्बूद्वीप व भरतक्षेत्र में जैन धर्मानुसार दो सूर्य तथा दो चन्द्रमा हैं। ये दोनों ही ज्योतिष्क देवताओं के इन्द्र है ।। ८४ ग्रह माने गये हैं परन्तु वर्तमान समय में इन द ग्रहों से ही काम लिया जाता है। उनके नाम ये हैं:-१ सूर्य । २ चन्द्रमा। ३ मंगल। ४ बुध। ५ वृहस्पति। ६ शुक्र। ७ शनिश्चर । ९ राहु और १ केतु। ये भी अपनी अपनी गति के अनुसार आकाश में भ्रमण करते हैं। इसी प्रकार आकाश में अट्ठाइश नक्षत्रों की व्यवस्था है। नक्षत्र १ अश्विनी । २ भरणी। ३ कृत्तिका । ४ रोहिणी। ५ मृगशिरा। ६ आन्। ७ पुनर्वसु । ८ पुष्य । ६ अश्लेषा । १० मघा। ११ पूर्वा फाल्गुनी। १२ उत्तरा फाल्गुनी। १३ हस्त । १४ चित्रा। १५ स्वाति। १६ विशाखा। १७ अनुराधा। १८ ज्येष्ठा । १६ मूला । २० पूर्वाषाढ़ा । २१ उत्तराषाढ़ा। २२ अभिजित । २३ श्रवण। २४ धनिष्ठा। २५ शतभिषक । २६ पूर्वाभाद्रपद । २७ उत्तराभाद्रपद । २८ रेवती। तारे असंख्य हैं। अश्विनी नक्षत्र से प्रारंभ कर वारह राशी मानी गई है। ज्योतिषी इन्हीं राशियोंसे मनुष्योंके शुभाशुभ का विचार करते हैं। वारह राशियोंके नाम तथा उनके अक्षर इस प्रकार : राशि तथा अक्षर १ मेष-चू चे चो ला ली लू ले लो अ। २ वृष-इ उ ए ओ वा वी वू वे वो। ३ मिथुन-का की कू घ ङ छ के को ह। ४ कर्क-ही हू हे हो डा डी डू डे डो। ५ सिंह--मा मी मू मे मो टा टी टूटे। ६ कन्या-टो प पी पू ष ण ठा पे पो। ७ तुला-रा रिरु रे रो ता ती तू ते। ८ वृश्चिक-तो. ना. नी नू ने नो या यि यू। ६ धन-ये यो भा भी भू धा फा ढ़ भे। १० मकर-भोज जि ज-जे जो खा खी खें.. खे खो गा गी। ११ कुंभ---गू गे गो सा सी सू से सो दा। १२ मीन- दी दू थ झ न दे दो चा ची! ___ मेष, सिंह, धन राशि का चन्द्रमा पूरव मे होता है अतः इन राशि वालों को पूर्व में प्रयाण करते समय सन्मुख चन्द्रमा लेना चाहिये। वृष, कन्या, मकर राशि का चन्द्रमा दक्षिण में होता है। कर्क, मीन, वृश्चिक राशि का चन्द्रमा उत्तर में होता है। सन्मुख चन्द्रमा अत्यन्त लाभदायक होता है। दाहिने चन्द्रमा धन सम्पत्ति का देने वाला होता है। पीठ पीछे का चन्द्रमा प्राण के हरण करने वाला और वायें ।। चन्द्रमा धन का नाश करने वाला होता है। इसलिये दो चन्द्रमा शुभ है और दो अशुभ है अतः शुभ चन्द्रमा में ही गमन विचार करना चाहिये।

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