Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 759
________________ यहां ये प्रश्न उठता है कि यदि पर्वतिथि का आराधन अपर्व तिथि में नहीं करना तो अष्टमी आदि के क्षय होने पर सप्तमी आदि में धर्मकार्य करना कैसे उचित हो सकता है ? ___ उत्तर यह है कि अष्टमी के अनन्तर पर्व तिथि का योग न होने से पूर्वमे रही हुई सप्तमी आदिमें ही धर्मकार्य करना उचित है। इसी तरह साम्वत्सरिक चौथका क्षय हो तो पञ्चमो को साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण करना परन्तु तीजको नहीं करना चाहिये। यदि चौथ दो हों तो प्रथम चौथमें ही धर्म कार्य करना उचित है। इसी प्रकार की शात्रों की आज्ञा है। मास प्रतिबद्ध जितने पर्व हैं वे सब मास की वृद्धि में कृष्ण पक्ष वाले पर्व प्रथम मास में और शुक्ल पक्ष में आने वाले पर्व द्वितीय मास में आराधन करने चाहियें। कदाचित् कार्तिक मास बढ़े तो पहले कार्तिक में चौमासा करे। फाल्गुण या आषाढ़ दो होने पर द्वितीय फाल्गुण या आषाढ़ में चौमासा करे। आषाढ़ चौमासे की चौदसा को प्रतिक्रमण करने के बाद पूर्णिमा से ४३ वें या ५० वें दिन सम्वत्सरी पर्व करे। चौथ कम हो तो पंचमी के दिन करे। चौमासे में यदि श्रावण, भादों या आसोज ये तीन मास बढ़े तो पंचमास का चौमासा करना शास्त्र सम्मत एवं वृद्ध परम्परानुसार मान्य है। चंदोवा रखने के स्थान प्रत्येक श्रावक को अपने घर में निम्न १० स्थानों में चंदोवे जरूर बांधने चाहिये। १ चूल्हे पर। १ पानी के परेन्डे पर। ३ भोजन के स्थानों में। ४ चक्की की जगह । ५ खाने पीने की चीज पर। ६ दूध दही आदि पर ( छाछ बिलोने के स्थान पर)। ७ शयनगृह में। ८ स्नानगृह में। सामायिक आदि धर्म क्रिया के स्थान में अथवा पौषधशाला और १० मन्दिरजी में। और साथ ही साथ घर में हमेशा उपयोग करने के लिये सात छनने रखने चाहिये । पानी छानने का। २ घृत छानने का। ३ तेल छानने का। ४ दूध छानने का। ५ छाछ या मट्ठा आदि छानने का। ६ गरम अचित्त जल छानने का और ७ आटा छानने (छनना या चालनी ) का । अभक्ष्य बाईस अभक्ष १ गूलर। २ प्लक्ष । ३ बड़ के फल। ४ काकोदुम्बरी। ५ पीपल । ६ मांस । ७ मदिरा। ८ मक्खन । मधु। १० अनजाने फल। ११ अनजाने फूल। १२ बर्फ। १३ विष (जहर) 1 १४ • आषाढ़ सुदी चतुर्दशी को पिछला चातुर्मास पूरा होता है चैत्र, वैशाख, जेठ, आषाढ। आषाढ सुदी चतुर्दशी को (चउण्हं मासाण अद्रोह पक्खाण विसोत्तरसय राई दियाण) का पाठ पढकर पिछले चातुर्मास की क्षामणा की जाती है। कालकाचार्यजी महाराज ने पक्खी, चतुर्मासो, प्रतिक्रमण, अम्मावस तथा पूर्णिमा से चतुर्दशी का किया है, वर्तमान समय में भी यति साधु पक्खी चातुर्मासी प्रतिक्रमण चतुर्दशी को ही करते हैं। कल्पद्रुम कलिका पृष्ठ १६०। * दशपञ्चकेषु कुर्वत्सु आषाढ पूर्णिमादिवसे प्रथम पञ्चक अग्रे एव पञ्चभिः पञ्चभिदिवसः एकैकं पर्व साधुना पञ्चाशदिने एकादश पर्वाणि भवन्ति ते एते एकादश पर्व दिवसेषु पर्युषणा पर्व कर्तव्य इति। आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर अगाड़ी ग्यारहवें पचकडे मे निश्चय ही सम्वत्सरी पवं कर लेना चाहिये। हरएक पचकडा ५ दिन का होता है और पहला पचकडा आषाढ सुदी ११ से १५ तक होता है। इसी तरह सब पचकड़े होते हैं। पाश्चमी से चौथ का सम्वत्सरी पर्व कालकाचार्यजी ने ही किया।

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