Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 757
________________ चौदह नियम चितारने की विधि . . . दिन के चार पहर के नियम सबेरे मुंह धोने के पहले ग्रहण कर साम को पार लीजिये, रात्रि के चार पहर के फिर शाम को ग्रहण कर सवेरे पार लीजिये, नियम तीन णमोक्कार गुन के लीजिये और तीन णमोकार गुनके पारिये । पारने के वख्त जो रक्खा था उसको याद करके संभाल लीजिये, कमती लगा उसका लाभ हुआ, भूल से जास्ती लगा उसका "मिच्छामि दुबई' दीजिये, चाहे आठ पहर के चितारिये, परन्तु चार पहरमें चितारनेसे पारने के बख्त ( कितना नियम चितारते हुए रक्खा है और कितना भोग मे आया है उसकी) विधि मिलानेमें सुगमता रहती है। ___ कोई व्रतधारी श्रावक जन्म भर के निर्वाह के वास्ते जादे जादे वस्तु रखते हैं तो १४ नियम चितारने से उनका भी आश्रव संक्षेप हो जाता है इस वास्ते व्रतधारी और अविरती को अवश्य १४ नियम चितारने चाहिये। - चौदह नियमों की गाथा (१) सचित्त, (२) दव, (३) विगइ, (४) वाणह, (५) तंबोल, (६) वस्थ, (७) कुसुमैसु, (८) वाहण, (६) सयण, (१०) विलेषण, (११) वंभ, (१२) दिसि, (१३) न्हाण, (१४) भन्तेसु । ___ गाथा का संक्षिप्त अर्थ १ सचित्त-कचा पानी, हरी तरकारी, फल, पान, हरा दातून. नमक आदि । २ द्रव्य-जितनी चीज मुंह में जावे उतने द्रव्य जल, मंजन, दातून, रोटी, दाल, चावल, कढी, साग,. मिठाई, पूरी, घी, पापड़, पान, सुपारी, चूरण आदि । __३ विगय–१०, जिनमें से मधु, मांस, मक्खन, और मदिरा ये ४ महाविगय अभक्ष होने से श्रावकों को अवश्य त्याग करना चाहिये और ६ विगय श्रावक के खाने योग्य है। घी, तेल. दूध, दही, गुड़ अथवा मीठा पक्वान्न (जो कडाही में भरे घी में तला जाय)। ४ उपानत्-जूता, चट्टी, खड़ाऊ, मौजा आदि (जो पांव में पहना जाय ) । ५ तंवोल-पान, सुपारी, इलायची, लौंग, पान का मसाला आदि। ६ वत्थ ( वस्त्र)-पगड़ी, टोपी, अंगरखा, चोला, कुड़ता, धोती, पायजामा, दुपट्टा, बहर, अंगोछा, रुमाल आदि मरदाना जनाना कपड़ा (जो ओढ़ने पहरने में आवे )। - ७ कुसुमेसु-फूल, आदि की चीजें जैसे सिज्या, पंखा, सेहरा, तुर्रा, हार, गजरा, इन (जो चीज सूचने में आवे)। ८ वाहन ( सवारी)-गाड़ी, फिटन, सिगरम, हाथी, घोड़ा, रथ, पालकी, डोली, रेल, ट्राम्बे, मोटर नाव, जहाज स्टीमर, वलून आदि यानि तैरता, फिरता, चलता और उड़ता। ९ शयन-कुरसी, चौकी, पट्टा, पलंग, तखत, मेज, शच्या आदि ( सोने वा बैठने की चीज)। १० विलेपन-तेल, केशर, चन्दन, तिलक, सुरमा, काजल, उबटन, हजामत, पुरस, कंघा काच देखना, देवाई आदि (जो चीज शरीर में लगाई जावे।) ११ बंभ (ब्रह्मचर्य )-स्त्री. पुरुपमें, सुई डोरे के नाप तथा वाह्य विनोद की संख्या करलेनी श्रावक परदारा त्याग और स्वदारा से ही सन्तोष रखे, उसका भी प्रमाण करें।

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