Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 758
________________ [ ५२ 1 १२ दिसि ( १० दिशा ) - शरीर से इतने कोस ( लम्बा, चौड़ा, ऊंचे, नीचे ) जाना आना, चिट्ठी तार इतने कोस भेजना, माल आदमी इतने कोस भेजना तथा मंगाना | १३ न्हाण ( स्नान ) सारे शरीर से स्नान करना ( मोटा स्नान ) कितनी बार हाथ पैर धोना (छोटा स्नान ) एक बार । १४ भत्ते -- अशन, पान, खादिम, स्वादिम, ये चारों आहार में से, खाने में जितनी चीजें आवे सब का कुल वजन इतना । ये १४ नियम के ऊपर ६ काय और ३ कर्म की मरजाद चितारनी अवश्य है । ६ काय १ पृथवीकाय-मट्टी, नमक आदि ( खाने में वा उपभोग में आवे ) उसका वजन । २ अप्पकाय - जो पानी पीने में वा दूसरे उपभोग में आवे उसका वजन + | ३ ते काय - चूल्हा, अंगीठी, भट्टी, चिराग आदि का प्रमाण । ४ वायुकाय - हिंडोले और पंखे ( अपने हाथ से वा हुकुम से ) जितने चलते हों उनकी संख्या का प्रमाण, रुमाल से वा कागज से हवा लेनी यह भी पंखे में गिनी जाती है, उसकी जयणा । ५ वनस्पतिकाय - हरी तरकारी तथा फलादि इतनी जात के खाने, घर सम्बन्धी मंगाने, जिसकी गिनती तथा वजन | ६ सकाय - त्रसजीव अपराधी, बिनापराधी, यह ६ काय का परिमाण कर लेना । ३ कर्म १ असी ( शस्त्र औजार ) - तरवार, बन्दूक, तमंचा, भाला, आदि, छूरी, कैची चक्कू, सरौता, चिमटी तथा औजार आदि । २ मसी ( लिखना पढ़ना ) - कागज कलम दवात. पेन्सिल, बही, पुस्तक, छापा, टाइप आदि । ३ कृषी (कस्सी) खेत, बगीचे आदि का परमाण । जैन तिथि मन्तव्य श्री हरिभद्र सूरिजी कृत तत्त्व तरङ्गिणी ग्रन्थ की आज्ञा है :तिहि पड़गे पुन्वा तिहि कायव्वा जुत्त धम्म कज्जेव । चउदसी विलोवे, पुण्णमिमं पक्खिपडिकमणं ॥ १॥ अर्थात् किसी तिथि का क्षय हो तो पूर्ण तिथि में धर्म कार्य करना उचित है। जो कदाचित् एकम तिथि कम हो तो धर्म कार्य पिछली अमावस्या तिथि को करे । अष्टमी का क्षय हो तो सप्तमी को व्रत आदि करे। यदि चतुर्दशी का क्षय हो तो पूर्णिमा या अमावस्या में पाक्षिक प्रतिक्रमण करना चाहिये कारण कि समीपवर्ती पर्व तिथि ( पूर्णिमा तथा अमावस्या ) को छोड़कर अपर्वतिथि में पर्वतिथि का आराधन करना युक्त नहीं है। + पानी को जात, कूवां, बावड़ी, तलाव, नदी, नहर, समुद्र, गङ्गा, मेघ आदि का प्रमाण संख्या भी करना अच्छा है । * यदि तिथि क्षय होकर घड़ी आध घड़ी से कम मिले तो सारे दिन नहीं मानी जाती। क्योंकि यह नियम गच्छ परम्परा जैन सिद्धान्तानुसार ही माना जायगा, ज्योतिष शास्त्र के अनुकूल नहीं। तेरस का क्षय हो जाय तो बारस में मिलेगी, चतुर्दशी में नहीं ।

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