Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 752
________________ तिथि [ ४६ ] भाद्रपद वदी तिथि आश्विन सुदी जन्मादिनगरी ७ श्री चन्द्रप्रभ पारंगताय नमः शिखरजी | जन्मादिनगरी ७, शान्ति परमेष्ठिने नमः हस्तिनापुर १५ श्री सुविधि परमेष्ठिने नमः . ८, सुपार्श्व परमेष्ठिने नमः मिथिला बाणारसी भाद्रपद सुदी १ च्यवन* कल्याणकमें सोना चढ़ावे । __ जन्मादिनगरी ६ श्री सुविधि पारंगताय नमः क्षत्रीकुण्ड २ जन्म कल्याणकमें घी गुड़ चढ़ावे। आश्विन वदी ३ दीक्षा कल्याणकमें वस्त्र चढ़ावे । तिथि जन्मादिनगरी १३ श्री महावीर गर्भापहाराय नमः क्षत्रीकुण्ड ४ केवल कल्याणकमें स्वेत गोला चढ़ावे । ३० , नेमि सर्वज्ञाय नमः गिरिनार मोक्ष कल्याणकमें गुड़, लोहा, लड्डू , चढ़ावे । पौष मास पर्वाधिकार पौष मासमें पौष वदि दशमी पौष दशमी' के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन श्री पार्श्वनाथ भगवान् का जन्म कल्याणक है। इस दिन दोनों समय प्रतिक्रमण करना चाहिये। जहां श्री पाश्वनाथ स्वामी का तीर्थ है वहां यात्रा करने को जावे। कदाचित् वहां न जा सके तो जहां श्री पार्श्वनाथजी की स्थापना अथवा देवालय हो वहां महोत्सव पूर्वक दर्शन करने जावे। जलयात्रादिक महोत्सव करके अष्टोत्तरी स्नात्र करावे। अष्ट प्रकारी एवं सत्रहभेदी पूजा विविध आडम्बरों सहित करे। पीछे गुरु महाराज के समीप जाकर पौप दशमी का व्याख्यान सुने। पीछे एकासन आदि का पञ्चक्खाण करे। चतुर्विध आहार का नियम लेवे। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भूमि पर शयन करे। हो सके तो रात्रि जागरण करे और गीत, गान, नाटकादि करे। जन्म कल्याणक स्तवन, पास जिनेसर जग तिलो ए, वाणी ब्रह्मा वादिनी इत्यादि पार्श्वनाथ स्वामी के गुणगर्भित स्तवन पढ़े। शास्त्रों में विधान है कि नवमी, दशमी और एकादशी इन तीनों दिन एक बार भोजन करना चाहिये। इस तरह मन, वचन और काया से जो भी भव्य दस वर्ष तक इस पर्व का आराधन करेंगे वे इस भव में तो धन, धान्य, पुत्र, कलत्र, आदि सुख सम्पदा को प्राप्त करेंगे तथा परभव में देवादिक ऋद्धियों को प्राप्त करते हुए क्रमशः निर्वाण प्राप्त करेंगे। इसीलिये इस पर्व की भी समुचित आराधन करना चाहिये। , श्री पार्श्वनाथजी का संक्षिप्त जीवन चरित्र श्री पार्श्वनाथजी २३ वें तीर्थङ्कर थे। आज से लगभग २८०० वर्ष पहिले काशी देश की बनारस नगरी में अश्वसेन राजा राज्य करते थे। ये बड़े प्रतापी सरल एवं न्यायप्रिय थे। इनकी रानी वामादेवी पतिव्रता और विदुषी थी। ___ इन्हीं रानी की पवित्र कोख से, विकम सवत् से १०० वर्ष पूर्व पौप वदि दशमी के दिन इन्होंने जन्म लिया। नगर भर में अपूर्व उत्सव मनाया गया। ज्योतिषी के कथन पर, कि "ये आपका पुत्र बड़ा यशस्वी होगा। पारस के समान जो लोहे को भी सोना बना देता है, लोगों को धर्ममार्ग बता कर सुखी करेगा” पिता ने इनका पार्श्व कुमार रख दिया। * उपरोक्त जापों मे च्यवनमे, परमेष्ठीनेपद, जन्ममें, अर्हते, दीक्षाम, नाथ, केवलज्ञानमें, सर्वजाय, और मोक्षमें, पारंगताय नमः हैं।

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