Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 739
________________ [ ३३ ] द्वात्रिंशिका, ११ अध्यात्म दीपिका, १२ पट्टावली, १३ तंजय स्तोत्र । १४ गुरु पारतन्त्र्य स्तोत्र सिग्यमहर स्तोत्र | भाद्रपद मास पर्वाधिकार भादव वदी ११-१२ या तेरस से पर्युषण पर्व आरंभ होकर भादव सुदी ४ अथवा कभी पंचमी को समाप्त होता है । इस पर्व की महिमा शास्त्रों ने बहुत वर्णन की है और लिखा है कि जिस तरह आसमान में उगने वाले तारों को कोई नहीं गिन सकता, गंगा नदी के रेत के कणों का हिसाब नहीं कर सकता, माता के स्नेह की सीमा नहीं देख सकता, वैसे ही इस पर्युषण पर्व की महिमा का पार पाना भी किसी के लिए संभव नहीं है । इसलिए यह सब पर्वो से उत्तम पर्व है । पर्युषण पर्व में अवश्य करने योग्य ग्यारह द्वार बतलाये गये है। इनको अवश्य करना चाहिये१ चतुर्विध श्री संघ मिल कर वीतराग प्रभु की पूजा करना । २ यति महाराजों की भक्ति करना । ३ कल्प सूत्र श्रवण करना । ४ वीतराग प्रभु की अर्चना और अंग रचना नित्य करना । ५ चतुर्विध संघ में प्रभावना करना । ६ सहधर्मियों से प्रेम प्रगट करना । ७ जीवों को अभय दान देने की घोषणा करना और करवाना | ८ अट्ठम तप करना । ज्ञान की पूजा करना । १० श्री सब क्षमायाचना करना । ११ और संवत्सरी प्रतिक्रमण करना । इसी प्रकार नित्य सामायिक, प्रतिक्रमण, पोसह आदि करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना यथाशक्ति दान देना, दया का भाव रखना, घर गृहस्थी के समस्त संकट छोड़ देना भूमि पर शयन करना सचित्त और सावद्य व्यापार से दूर रहना, रथयात्रा आदि महोत्सव कराना, इस प्रकार ज्ञान की वृद्धि करना, मांगलिक गीत गाना आदि कृत्य श्रावकों को करने चाहिये । और धर्म कार्यो में लग जाना चाहिये। जो मनुष्य ऐसा नहीं करते वे अपना जन्म वृथा ही गंवाते हैं । जो भव्य प्राणी इसकी आराधना करते हैं वे इस लोक में ऋद्धि, वृद्धि, सुख सम्पदा को प्राप्त करते है, परलोक में इन्द्र की पदवी पाते हैं और क्रम से तीर्थकर पद प्राप्त कर मोक्ष पदवी प्राप्त करते हैं । कल्पलता शास्त्र में पर्यापण की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है कि जैसे जगन मे नत्रकार के समान मंत्र नहीं है, तीर्थो में शत्रुंजय के समान कोई तीर्थ नहीं है, पांच दानों में अभयवान और सुपात्र दान के समान कोई दान नहीं है, गुणों में विनय गुण, वनों में ब्रह्मचर्य व्रत, नियमों में संतोष नियम. तपों में उपशम तप, दर्शनों मे जैन दर्शन, जल में गंगा जल, तेजवंतों मे सूर्य, नृत्यकला में मोर, गजों में एगवन, दैत्यों मे रावण, वनों मे नन्दन वन, काष्ठ में चन्दन, सतियों में सीता सुगन्ध में कस्तूरी, त्रियों में गंभा, धातुओं में स्वर्ण, दानियों में कर्ण, गौ में कामधेनु, वृक्षों में कल्पवृक्ष के समान उत्तम कोई और नहीं है उसी तरह सब पर्वो में यह उत्कृष्ट पर्व है और इससे उत्तम कोई पर्व नहीं । पर्युषण पर्व में यतियों को संवत्सरी प्रतिक्रमण करना, बीच बीच मे क्षमा प्रार्थना करना. कल्पसूत्र बांचना, सिर के बालों का लोच करना, तेले का तप करना, नवं मंदिरों में भाव पूजा करना इत्यादि धार्मिक कृत्य करने चाहिये । श्रावकों को अन्य धार्मिक कृत्यों के साथ ही साथ श्रुत ज्ञान की भी भक्ति करनी चाहिये । सूजी को विधि सहित अपने घर में ले जाये। रात्रि जागरण करें। दूसरे दिन प्रभाव नग नगर के सर्व श्री संघ को निमन्त्रित कर उनका यथायोग्य सन्मान गरे । फिर कलेज

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