Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 734
________________ [ २८ ___ उस समय युगलिया धर्म टूट चुका था क्योंकि पहले ही पहिले एक दिन वाड़ के वृक्ष के नीचे बैठे हुए बहन भाई युगलियेके जोड़े, ताड़ वृक्षके फल टूटनेसे भाईकी मृत्यु होगई इसलिये वह कन्या इधर उधर भटकने लगी। कई युगलिये उसको लेकर नाभि कुलकर राजा के पास गये। नाभि राजा ने पूर्ण वृतान्त सुन कर कहा कि ये ऋषभ की धर्मपत्नी होवे। फिर उन्होंने उसको अपने पास रख लिया। उस स्त्री का नाम सुनंदा था। युवावस्था में प्रवेश करने पर, अपने भोगोपभोग कर्मों को अवधिज्ञान के द्वारा जान कर, सौधर्मेन्द्र को प्रेरणा से बड़ी धूम धाम से सुमगला और सुनंदा के साथ भगवान् ने पाणी ग्रहण किया और तभी से लोक में विवाह की रीति प्रचलित हुई। ___ उस समय में कालदोष से कल्प वृक्षों का प्रभाव कम हो चला था, युगलियों में कापायिक भाव और झगड़े बढ़ने लगे थे तब इन्द्र ने आकर राज्याभिषेक कर प्रभु को दिव्य अलंकारो से अलंकृत किया क्योंकि युगलिये राज्याभिषेक की विधि नहीं जानते थे। तब इन्द्र ने कुबेर को विनीता नगरी निर्माण करने का आदेश दिया। सर्व प्रथम ऋषभदेव ही राजा हुए इसीलिये उन्हें आदिनाथ कहा जाता है। भगवान ने लोगों को असि, मसि, कृषि, वाणिज्य और शिल्प के काम सिखलाये। विवाह के पश्चात् भगवान ने कुछ वर्ष कम ६ लाख वर्ष तक सुमंगला और सुनंदा से सुखोपभोग किया। सुसंगला ने भरत ब्राह्मी को एक साथ जन्म दिया और ४६ युग्म पुत्रों को जन्मा । सुनन्दा ने बाहुबली और सुन्दरी के जोड़े को उत्पन्न किया। ___ अन्त में लोकांतिक देवों की प्रेरणा से, और पूर्व भव के सुखों को विचार कर, संसार को अनित्य जान कर, भरत को राज्य दिया। एक वर्ष तक वर्षी दान देकर प्रभु ने चार हजार राजाओं के साथ चैत्र वदि अष्टमी को दीक्षा ग्रहण की। पारने के दिन प्रभु को कहीं भी निर्मल आहार नहीं मिला इस लिये वे निराहार ही विहार करने लगे। हस्तिनागपुर में सोमप्रभ राजा के पुत्र श्रेयांस कुमार के हाथों से प्रभु का पारना हुआ और वह दिन अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्ध हुआ, सो हम पहले लिख ही आये हैं। प्रभु को अयोध्या नगरी में फागुन वदि एकादशी के दिन कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई। देवों ने समवसरण की रचना की और भगवान् ने जीवों को भवसागर तार देने वाली धर्म देशना दी। उनके देशना को सुन कर भरत के ऋषभसेन मरीचि आदि ५०० पुत्रों ने, और ब्राह्मी आदि ने दीक्षा ग्रहण की। उसी समय से भूपभसेन आदि साधुओं, ब्राह्मी आदि साध्वियों, भरत आदि श्रावकों और सुन्दरी आदि श्राविकाओं से चतुर्विध संघ की स्थापना हुई। गोमुख नामक यक्ष प्रभु का अधिष्ठायक और चक्रेश्वरी देवी शासन देवी हुई। ___ एक लाख पूर्व दीक्षा के पश्चात् बीतने पर, प्रभु अपना निर्वाण समीप जान कर अष्टापद पर्वत प्राचीन समय में युगलिये जोड़े से उत्पन्न हुआ करते थे। जब तक वे युवावस्था को प्राप्त नहीं होते थे तब तक उनमें वह न भाई का सम्बन्ध रहता था जव युवावस्था होती तब उनमें स्त्री पुरुष का सम्बन्ध हो जाता था उसी समय ऋषभदेव स्वामी तथा सुमगला युवावस्था में प्रवेश कर रहे थे अचानक एक युगलिये की मृत्यु हो गई तब उसकी बहन का ऋषभदेव स्वामी के साथ विवाह हुभा। जो युगलिया मरा था वह उस स्त्री का पतित्व रूप होकर नहीं मरा था इसलिये भगवान् का विधवा विवाह नहीं हुआ था जो लोग अपभटेव स्वामी पर विधवा विवाह का झूठा लांछन लगा कर अपनी पाप मनोवृत्ति को लोगों में प्रचलित करते हुए भगवान् को विधवा विवाह के प्रमाण स्वरूप जनता में प्रगट करते हैं यह उनकी यी भारी भूल है। दूसरों के यहा से लड़की लाना उसी वक्त से चला है।

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