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మమతను
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కునానడattitute स्तुति-विभाग
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करिये त्रण उपवास ॥१॥ चौवीसे जिनवर पूजा सतर प्रकार, करिये भले भावे भरिये पुण्य भंडार । बलि चैत्य प्रवा. फिरतां लाभ अनन्त, इम परव पजूसण सहु) महिमावंत ॥२॥ पुस्तक पूजावी शुभ बांचनायें बंचाय, श्री कल्पसूत्र जिहां सुणतां पाप पुलाय । प्रति दिन परभावना धूप अगर उक्खेव, इम भवियण प्राणी परव पजुसण सेव ॥३॥ वलि साहम्मीवच्छल करिये बारम्बार, केइ भावना भावे केइ तपसी शिलधार | अडदीह पजूसण इम सेवत आनंद, सुय देवी सांनिध कहे श्री जिन लाभ सुरिंद ॥४॥
नवपद स्तुति ___जग नायक दायक सिद्ध चक्र सुखकंद, जेहना जपथी भाजे भव भय फंद । श्री पाल ने मैना विधि से ये तप कीध, नव पद थी थासे अष्ट सिद्धि नव नीध ॥१॥ जिन सिद्ध आचारज पाठक श्री मुनिराय, दर्शन ज्ञान चारित्र नवमो तप कहवाय । एक एक पद ध्याता जीव तरया संसार, चौवीसी प्रणमं कीधो भवि उपगार ॥२॥ आसू वलि चैत्रे सुदि | सातम थी जान, आलोकी जे शुभ भावे आंबिल कर पचखान । पद पद
नो गुणनो, कीजे मन सुजगीस आगम मांहे बोल्यो ध्यावो तुम निस दीस ॥३॥ विमलादिक देवा देवि चक्केसरि मान, सिद्ध चक्र ना सेवक आपे वंछित दान । खरतर गछ दिनकर श्री जिन अखय* सुरिन्द, तासु चरण पसायें भाखे श्री जिनचन्द ॥४॥
नवपद स्तुति निरुपम सुखदायक जग नायक, लायक शिवगति गामी जी। करुणा सागर निज गुण आगर, शुभ समता रस धामी जी ॥ श्री सिद्ध चक्र शिरोमणि जिनवर, ध्यावे जे मन रंगे जी। ते मानव श्री पाल तणी परें, पामे सुख सुर संगे जी ॥१॥ अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक, साधु महा। गुणवंता जी । दरसण नाण चरण तप उत्तम, नवपद जग जयवंता जी ॥
* यह स्तुति श्री रंगविजय खरतरगच्छीय जं० यु० प्र० वृ० भट्टारक श्री पूज्यनी श्री जिन अखय सूरिजी महाराज की बनायी हुई है।