Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 719
________________ [ १३ ] अंग्रेजी सरकार ने अश्लील चित्रों को इसलिये वन्द कर दिया है कि उनके देखने से जनता का मानसिक पतन होगा। यही कारण है कि कोक शास्त्र के चौरासी आसन आज कल नहीं निकाले जासकते । जव अभद्र चित्रों के द्वारा मानसिक पतन अवश्यम्भावी है तब भद्र पूज्य जनक तीर्थङ्करों की मूर्तियों से मानसिक उत्थान क्यों नहीं होगा ? फिर मूर्ति पूजा से दिमाग मे खुजली क्यों ? ] कुछ दिन पहिले की बात है, इलाहावाद के मासिक 'चाँद' ने फांसी अङ्क निकाला था। अंग्रेजी सरकार ने उसे जब्त कर लिया। क्यों? इसलिये कि उसमें अंग्रेजी हुकूमत में जितने देश भक्त फांसी पर लटकाये गये हैं, उन सभी के चित्र और चरित्र निकाले गये थे। और उन चित्रों एवं चरित्रों के द्वारा अंग्रेजी सरकार के प्रति जनता की सामूहिक घृणा उठ खड़ी होती और अशान्ति फैल जाती। [इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि लोगों के सामने जैसे चित्र आते हैं, वैसा ही प्रभाव द्रष्टाओं के दीमाग पर पड़ता है, तब क्या कारण है कि धर्म-प्राण तीर्थङ्करों की प्रभावोत्पादक मूर्तियों द्वारा मूर्ति पूजकों के दीमाग पर तदनुकूल प्रभाव न पड़े।] ___अनुत्तरोप पातिक सूत्र में स्थानकवासी अमूर्ति पूजक उपाध्याय श्री आत्मारामजी ने अपना फोटो दिया है और उस फोटो के नीचे लिख दिया गया है कि यह फोटो परिचय के लिये है। [जब चित्र से परिचय प्राप्त किया जाता है, तव मूर्तिपूजक सम्प्रदाय भी तो तीर्थङ्कर भगवान् की मृत्ति से परिचय ही प्राप्त करना चाहती है, उनके सल्लक्षणों, शुभ गुणों से अपने हृदय को परिचित ही कराना चाहता है, फिर इसमें आपत्ति क्यों? क्या इसी का नाम असूया नहीं है ? ] . जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय, स्थानकवासी, तेरापन्थी भी सामायिक करने के समय श्री सीमन्धर स्वामी का वन्दन नमन किया करते हैं सीमन्धर स्वामी महा विदेह क्षेत्र में विराजमान है, ऐसा माना जाता है। [जब जिस वक्त सीमन्धर स्वामी का वन्दन नमन होता है, उस वक्त अगर सीमन्धर स्वामी का निर्वाण हो जाय, तब वन्दन नमन किसको होगा ? क्योंकि सीमन्धर स्वामी की सत्ता तो रहेगी नहीं तव तो मानना पड़ेगा कि वन्दन नमन काल्पनिक सीमन्थर स्वामी को लक्ष्य करके किया जाता है। फिर काल्पनिक तीर्थङ्करों की मूर्तियों से एतराज क्यों ? ] उपर्युक्त प्रमाणों और युक्तियों से यह सिद्ध हो जाता है कि मूर्ति पूजा युक्ति युक्त है। कोई भी धर्म कोई भी सम्प्रदाय ऐसा नहीं है, जो प्रकारान्तर से मूर्ति पूजा न करता हो, चाहे वह अपने को अमूर्ति पूजक वतावे चाहे मूर्ति पूजक ! वैदिक धर्मावलम्बियों के मन्दिरों में मूर्ति या है ही। मूर्ति पूजा के विरोधी आर्य समाजियों में भी दयानन्द की मूर्ति आदर सद्भाव की दृष्टि से रक्खी ही जाती है उस मूर्ति के प्रति अगर कोई दूसरा आदमी अपमान जनक तरीके से पेश आये तो आर्य समाजी भी मर मिटेंगे। क्या यह मूर्ति पूजाका द्योतक नहीं है ? किसी समय सनातनियों ने दयानन्द की मूर्ति के लिये भरी सभा मे अपमान जनक तरीका अख्तियार किया था, जिसके लिये आर्य समाजियों की तरफ से खूब मुकदमा वाजी हुई थी। मुसलमान लोग अपने को मूर्ति पूजक्र नहीं मानते, पर विचार करने पर मालूम होगा कि वे लोग भी काल्पनिक मूर्ति को मानते ही है। मुसलमान लोग पश्चिम दिशा की ओर मुह करके नमाज पढ़ते हैं। मुसलमानी रियासतों में पच्छिम तरफ पैर रखकर सोना या टट्टी पेशाब करना कानूनन मना है। क्यों ? इसलिये कि मका मदीना पच्छिम में ही है। मका मदीना में कभी मोहम्मद साहेब थे,

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