Book Title: Jain Ratnasara
Author(s): Suryamalla Yati
Publisher: Motilalji Shishya of Jinratnasuriji

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Page 713
________________ है। किसी वस्तु की जानकारी में आकार भी सहायता प्रदान करता है। क्योंकि कोई किसी पदार्थ को उसके आकार के द्वारा ही निश्चित करतो है अतएव स्थापना भी वस्तु का स्वधर्म है। तीसरा द्रव्य निक्षेप है। द्रव्य शब्द आकार गत गुण का बोधक है। पदार्थ के निश्चय करने में आकार गत गुण भी निश्चयात्मक होते है। अगर कोई काली गौ लाने के लिये कहता है तो लानेवाला गौ' इस नाम और लोम, लाङ्गुल, शृङ्ग प्रभृति अंगों से समन्वित आकार के साथ-साथ उसके आकारगत कालापन को देख कर ही ला सकता है। इसलिये द्रव्य भी वस्तु का स्वधर्म है। चौथा भाव निक्षेप है। भात्र का अर्थ है उपयोग। दूध के लिये गौ लाने को कहा जायगा तो लानेवाला दुग्धदायिनी प्रकृति की भी जानकारी कर लेगा तत्र कही गौ ला सकेगा। इसलिये मानना पड़ेगा कि भाव भी वस्तु का स्वधर्म है। एक और उदाहरण लीजिये कि किसी मनुष्य ने किसी से कहा कि तुम भण्डार से घड़ा ले आओ। लानेवाला 'घड़ा' यह नाम सुन कर चला गया और भण्डार में अनेक वस्तुओंके होते हुए भी आकार-प्रकार से घड़े को पहिचान लिया। बाद में द्रव्य भी पहिचाना कि घड़ा कच्चा है या पक्षा, लाल है या काला। फिर उसने इस बात की भी जानकारी प्राप्त की कि इस के द्वारा पानी भरा जा सकेगा। इस भाति चारों स्वधर्मों के द्वारा निश्चय करके ठीक-ठीक घड़े को उठा लाया। इसी तरह जिन भगवान् को हमलोग मूर्ति वनवाते है और उस मूर्ति का नाम कहा करते हैं 'जिन भगवान् । यद्यपिवह मूर्तिपाषाण काष्ठधात्वादिकागज औररंगोंके सिवायऔर कुछ नहीं है, फिर भी हमलोग उस मूर्तिका नाम करण करते हैं जिन भगवान्' । यह आकार जिन भगवान का है, ऐसा समझ कर स्थापना करते है। तदनन्तर उस मूर्ति में जिन भगवान् की आत्मा का अनुभव करते हुए हम उनके दया, दान, क्षमा, तपस्या आदि गुणों को अपने स्मृति-पथ के पान्थ बनाया करते हैं, उनकी शान्त मुद्रा पद्मासन योग प्रभृति स्वरूपों का हमारे मानस पर शनैः शनैः सफल असर पड़ता है और हम सोचते है कि हममे भी किसी दिन भगवान् के ये गुण आ जायगें और हम मुक्त हो जायगें। अन्त में फल भी वही होता है जो कि होना चाहिये। किसी ने सच कहा है-- जाको जा पर सत्य सनेहू । , सो तेहि मिले न कछु सन्देहू ।। यही कारण है कि हमलोग बड़ी भक्ति और श्रद्धा से मूर्तियों को वन्दन नमन किया करते है । नाम निक्षेप। नाम निक्षेप के दो भेद है। एक अनादि एवं स्वाभाविक. दूसरा सादि तथा कृत्रिम । अनादि स्वाभाविक के भी दो भेद है, अनादि स्वाभाविक दूसरा अनादि संयोग सम्बन्ध जन्य । अनादि स्वाभाविक का उदाहरण लीजिये, जीव और अजीव । चेतनात्मक (चेतनास्वरूप) ज्ञान से वंचित होने के ही कारण 'संसारी जीव' ऐसा नाम पड़ा है। इस जीव को ही कोई 'आत्मा' कोई 'ब्रा' कोई परमात्मा कह कर पुकारा करता है। पर यह नाम कब पड़ा ? किसने रखा ? यह कोई नहीं बता सकता। इसलिये यह अनादि स्वाभाविक नाम निक्षेप है। ____ इसी तरह आकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और पुद्गल परमाणु ये सब अजीव है। और इन सबों के ये नाम अनादिकालिक तथा स्वाभाविक है; क्योंकि इनके सादित्व और कृत्रिमता के निश्चायक कोई आधार नहीं है। दूसरा है अनादि संयोग सम्बन्ध जन्य । जीवों का करें से अनादि काल से लेकर सुदृढ़ सम्बन्ध है। जिसके फल स्वरूप जीव चौरासी लाख योनियों में चक्कर काटा

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