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स्तवन-विभाग
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( सुगुण सनेही मेरे लाल )
चौथे व्रत भांगे अतिचार, जघन्य छट्ठ आलोयण धार | मध्ये दस उपवास विचार, उत्कृष्टा गुण लख नवकार ||२२|| परिग्रह विरमण दोष प्रसंग, तीन गुणवत मांहे भंग । चार शिक्षाव्रत ने अतिचार, आम्बिल त्रिण प्रत्येके धार ||२३|| शील तणी नव बाड़ कहाय, तिहां जो लागे दोष जणाय । तिनके फरस हुआं अविवेके, एक आंबिल की प्रत्येके ||२४|| साधु अने श्रावक - पोषध, एकेन्द्री सचित संघट्टे कीध । वीसर भोले सचित्त जल पीध, दण्ड एकासण आम्बिल दी ||२५|| विण धोयां विण लूह्यां पात्रे, एकासण तिम पुरिमड्ड मात्रे | गइ मुंहपत्ति आंबिल सारो, तिम ओघे आठम अवधारो ||२६|| चार आगार छांड़ी राखे व्रत पच्चक्खाण करे षट् साखे । ढोखे मिच्छामि दुक्कड़ भाखे आलोयण लेतां अभिलाखे ||२७|| आलोयण ने अति विस्तार पूरो कहितां नावे पार । तो पिण संक्षेपे तत्वसार, निरमल मन करतां विस्तार ||२८|| इम श्री वीर जिनेसर स्वामी, जसु आगम वचने विधि पामी । जीत कल्प ठाणांगे आद, वली परम्पर गुरु सुप्रसाद ॥ २९ ॥
कलश
इम जेह धरमी चित्त विरमी, पाप सब आलोयनें । एकान्त पूछे गुरु बतावे, शक्ति वय तसु जोयनें । विधि एह करसी तेह तिरसी घरमवन्त तने धुरे । एतवन श्री घरम* सिंह कीधो चौपने फल वधि पुरे ॥ ३० ॥ पद्मावति आलोयण
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हिवे रानी पद्मावती, जीव राशि खमावे । जाप भनूं जग ते भलो, इण वेला आवे ॥१॥ ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं, अरिहंतनी साख । जे मैं जीव विराधिया, चउरासी लाख ॥ ते० २ ॥ सात लाख पृथवीं तणां, साते अपकाय । सात लाख तेऊ काय ना, साते वलि वाय ॥ ते० ३ ॥ दश प्रत्येक वनस्पति, चउदह साधारण । वीति चउरिन्द्रिय जीव ना, वे वे
* यह आलोयण श्रावक धरम सिंह का बनाया हुआ है ।