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पूजा-विभाग
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दशम ध्वज पूजा
॥दोहा॥ दंड मनोहर लायके, सुंदर ध्वजा बनाय । करो चैत्य महावीर के, उत्सव ध्वजा चढाय ॥१॥
(राजुल पुकारे नेम पिया) गौतम पुकारे प्राणनाथ क्या दगा किया। मुझे छोड़के अकेले आप, मोक्ष चल दिया ॥ गर आपकी न राय थी कि, मोक्ष ले चलें। तो अंतका मिलाप मुझसे क्यों हटा लिया । गौतम० ॥२॥ हर वखत आप मुझ को, गौतम कह बोलावते । एक आज का ही दिन हुवा, बिलकुल भुलादिया । गौतम० ॥३॥ जो होति बात कुछ मि । फौरन पूछ आप से। करता दलील आपसे, उस दम बता दिया । में गौतम० ॥४॥ कहां जाय के विचार अब किस को सुनाऊंगा । आज
इस दुविधाने मेरा दिल दुखा दिया ॥ गौतम ५ ॥ सूरत पियारी आपकी, कब देख पाऊंगा। यह दास की पुकार जो थी सब सुनादिया गौतम० ॥६॥
कोयल कुहुक रही मधु बनमें ॥ मैं बलिहारी पावा पुरि की पावा पुरि के, जल मंदिर की में बलिहारी पावा पुरि की ॥ कार्तिक वदी अमावस राते, भीड़ मची इंदर सुरवर की ॥ मैं० ७ ॥ शासन नायक मोक्ष सिधारे, आज्ञा ले सुरवर इंदर की ॥ मै० ८ ॥ चंदन चय बिच दाह करीके, रत्न पीठिका कर जिनवर की ॥ मैं. ९ ॥ चरण पीठिका स्थापन करिके, पूजा करत सकल ईश्वर की ॥ मैं० १० ॥ नंदी वर्धन आदिक राजा, कीन्हीं यात्रा पावा पुरिकी ॥ मैं० ११ ॥ ध्वज पूजन जिनवर की करके, आसा पूगीदास चतुर की ॥ मैं० १२ ॥
वीरः सर्व सुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधाःसंश्रिताः। वीरेणाभिहतः । वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः । वीरातीर्थमिदं प्रवृत्त मतुलं. वीरस्य
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