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व्यथा की अनुभूति नही होती। फिर देह होता है, किन्तु, देहाध्यास नही होता । महावीर ने इसी प्रक्रिया का आरम्भ किया था और वे इसके द्वारा शरीर - विजय मे पूर्णतः सफल हुए । शरीर उनके अधीन रहा, वे शरीर के अधीन नही रहे ।
एक प्रवाह चलता है । उसे यदि बदला नही जाता है, तो जो होता आया है, वही भविष्य मे चलता रहेगा । उसे बदलने के लिये जितना श्रम अपेक्षित होता है, उससे अधिक मार्गान्तरण के चयन में सजगता अपेक्षित होती है । महावीर जब प्रव्रजित हुए, चालू प्रवाह को बदलने की उस प्रक्रिया को ही उन्होने अपना लक्ष्य बनाया और उसमें वे सफल भी हुए । यही कारण है कि उग्र तपश्चरण में भी वे कभी म्लान नही हुए ।
शरीर-विज्ञान के अनुसार भी जब-जब रक्त की गति में वेग और गतिमंदता आती है, तब-तब सम्बन्धित अन्य अवयव प्रभावित होते हैं और किसी विकार का आरम्भ हो जाता है । यह विकार रोग के रूप में भी व्यक्त होता है और इन्द्रियज उद्व ेग, आवेश, अहं आदि के रूप मे भी प्रकट होता है । प्राण वायु का जागरण तथा अन्य चार प्रकार की वायुओ की श्लथता रक्त की सम स्थिति को उजागर करती है । यही से सम्बन्धित नाना अनुभूतियो गौण हो जाती है और स्व-केन्द्रिता जागरूक । महावीर इस क्रिया मे आरम्भ से ही निष्णात थे, इसीलिए कष्ट साध्य साधना में उन्हे कष्टो की अनुभूति नही होती थी । जनता को भी इसका ही प्रशिक्षण देते थे । मानसिक उगो के इस वर्तमान युग में प्राणवायु पर विजय पाने की इस प्रक्रिया की अत्यन्त आवश्यक है ।
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महावीर जयन्ती के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें
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ताजगी, सुस्वादु विशुद्ध दुग्धजात द्रव्य और शक्ति का प्रतीक मुन्नालाल द्वारकादास बडला कलकत्ता-७
शताब्दि की परम्परा से पुष्ट मुन्नालाल द्वारकादास
'फूल मार्का हाऊस' ७६ नं० बड़तल्ला स्ट्रीट, कलकत्ता-७