Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 170
________________ जैन कथाओं में न्याय व्यवस्था इन जैन कथाओ मे प्राचीन नरेशो की न्याय व्यवस्था के अनेक आदर्श उपस्थित किये गए है । हमने इस तथ्य को कई बार स्वीकार किया है कि हमारा पुरातन युग प्रशस्त था एव नरपतियो ने जिस आत्मीयता से प्रजा की सुरक्षा की है बह आज भी वरेण्य है । भले ही इन कहानियो मे चित्रित राजव्यवस्था एक तत्रात्मक रही है फिर भी लोक तत्रात्मक शासन की कभी भी उपेक्षा नही हुई है । नरपतियो ने सदैव प्रजा को अपनी पुत्री के समान माना और उसके सुख-दु ख को अपना ही समझा । वे अपने सर्वस्व को स्वाहा करके जनता को सुखी बनाते थे और कठिन समय मे जन-सेवक के रूप मे सेवा करने के लिए तत्पर हो जाते थे । इन नरेशो की न्याय-व्यवस्था सर्व सुलभ थी और पीडित कभी भी राज दरबार मे उपस्थित होकर अपनी कथा सुना सकता था। अपराधियो की खोज के लिए आवश्यकता पड़ने पर राजा कभी भिक्षुक बनकर तो कभी सामान्य व्यक्तित्व को अपनाकर इधर-उधर भटकने लगता था एव राजकीय अधिकारियो को अव्यवस्था होने पर दण्ड भोगना पडता था। अपराधियो मे किसी प्रकार का जाति-गत अथवा वश-गत विभेद मान्य न था। राज परिवार के सदस्यो को भी राज्य सभा मे उपस्थित होकर दण्ड स्वीकार करना पडता था। कई कथाएँ ऐसी प्राप्त हैं जो बताती है कि राजकुमारो को भी अपराधी सिद्ध होने पर निश्चित व्यवस्थानुसार दडित किया जाता था और किसी भी

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