Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 169
________________ न कथानो मे सौन्दर्य-बोध ए विधि तुम ते भूलि भई, समझे न कहाँ कसरि बनाई । दीन कुरगनि के तन मे, तृण दन्त धरै करुना किमि काई । क्यों न करी तिन जीभन जे रस, काव्य करे पर को दुखदाई । साधु अनुग्रह दुर्जन दड, दोऊ सधते बिसरी चतुराई । जैन शनक ६६

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