Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 176
________________ जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन सूरसेन ने कहा-'मैं तुमको ही अपनी पुत्री दूंगा मगर तुम अवधि नियत करके जाओ।' मदाली कुपारी रहकर ही अपनी जवानी के दिन काटने लगी उसके मकान के पास ही एक बारह करोड की सम्पत्ति का स्वामी नागचन्द्र नाम का वणिक रहता था। उसके वारह स्त्रियाँ थी। मदाली और उसका परस्पर प्रेम हो गया, और दोनो आनद से काम सेवन करने लगे । कोतवाल को इनका हाल मालूम हो गया, एक दिन कोतवाल ने किसी तरह इनको एक साथ पकड लिया और दोनो को राजा के सामने पेश किया । राजा ने इनके लिए जो आज्ञा दी उसी के अनुसार ये दण्ड भोग रहे हैं । (सूर्य मित्र और चाडाल पुत्री की कथा-पुण्याश्रव कथाकोश पृष्ठ १४६) एक दिन राजा श्रेणिक के सामने एक झगडा उपस्थित हुआ, जिसका साराश यह है कि-उसी राजगृह नगर मे समुद्रदत्त सेठ के वसुदत्ता और वसुमित्रा नाम की दो स्त्रियाँ थी जिनमे से छोटी वसुमित्रा के एक पुत्र था । वह पुत्र दोनो को इतना प्यारा था कि दोनो ही उसका लालन-पालन करती और दूध पिलाया करती थी। कुछ दिनो के पीछे सेठ के मरने पर उन दोनो मे 'यह मेरा पुत्र है' इस प्रकार कह कर झगडा शुरु हुआ और वह यहाँ तक वढा कि वे दोनो राजा के पास पहुँची । परन्तु राजा अनेक प्रयत्न करने पर भी फैसला न कर सका । तब अभय कुमार के पास वह झगडा आया और उसने अनेक उपायो से उसका असली तत्व समझना चाहा, परन्तु जब कुछ लाभ नही हुआ अब अन्त मे अभयकुमार ने एक प्रयत्न किया । वह यह है कि उस बालक को धरती पर लिटाकर एक छुरी निकाली और उसे यह कहकर मारने को तत्पर हुआ कि अब इन दोनो माताओ को इसके दो टुकडे करके एक-एक सोप देता हूँ। इसके बिना यह झगडा नही मिट सकता । यह सुनते ही जो उस बालक की असली माता थी, उसने पुकार कर और रोकर कहा-'महाराज | मुझे यह पुत्र नही चाहिये । इसी को (दूसरी को) सौंप दीजिए । मैं उसके पास ही इसे देख-देख कर जीऊँगी, परन्तु कृपा करके वध न कीजिए।" इस सच्चे पुत्र स्नेह से अभयकुमार ने तुरन्त जान लिया कि यही इसकी यथार्थ माता है अतएव उसी समय वह पुत्र उसे सौंप दिया गया । (राजा श्रेणिक की कथा, पुण्याश्रव कथाकोश पृष्ठ ४७)

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