Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 125
________________ जैन कथाओ में प्रकृति - चित्ररण aढ़ाने के लिए प्रकृति का भी सुन्दर चित्रण इन कथाकारो ने वडी भावुकता मे किया है । सामान्य रूप से प्रकृति का चित्रण इन कहानियो मे निम्नस्थ रूप मे हुआ है - ( १ ) ग्रालम्वन रूप मे (२) मानवीकरण के रूप मे (३) पृष्ठभूमि के रूप मे (४) उपदेशिका के रूप मे ( ५ ) उद्दीपन रूप मे ( ६ ) अलकार प्रदर्शन के रूप मे (७) प्रतीकात्मक रूप मे ( ५ ) विम्ब - प्रतिविम्व रूप मे (२०) दूतिका के रूप मे । यहाँ कुछ उद्धरण दिये जा रहे हे जो प्रकृति के विविध रूपों को प्रस्तुत करते है तथा यह भी बताते हैं कि भावुक कथाकार प्राकृतिक दृश्यों से किस प्रकार प्रभावित हुया है, जैन कथाप्रो मे पशु-पक्षियो का मानवीकरण एक विशिष्ट उद्देश्य का परिचायक है । यह मानवीकरण धार्मिक महत्व को प्रतिपादित करता है । यहाँ गाय, बैल, गज, सिंह, व गाल, मयूर, हस, शुक, सारस, मैना आदि मुनियों के उपदेशो से प्रभावित होकर सन्यास धारण करते हैं, मास-भक्षण का परित्याग करते है, रात मे जल पीना छोड़ते है, विद्व ेश को भूलते हे एव जाति स्मरण से अपने दुष्कृत्यों के लिए पश्चात्ताप करके स्वजीवन को सुधारने का पूर्ण प्रयास भी करते है । बसन्त वर्णन - १०७ "हरिष पुराण" पृष्ठ क्रमाक १७० से १७३ तक कदाचित वसत ऋतु का श्रागमन हुआ । वसत के प्रभाव से चारो दिशाओ मे एक विलक्षण शोभा नजर ग्राने लगी । उन समय वनमाला नवीन पुष्प और पल्लवो की लालिमा से व्याप्त हो गई थी इसलिये उनसे वसत ऋतु अतिशय रमणीय जान पड़ती थी । मनुष्यों के मन को हरण करने वाले ग्राम के वृक्ष उस समय लाललाल नवीन पल्लवी से व्याप्त हो गये थे । उनसे ऐसा जान पडता था मानो राजा मुरा को वन देवी की प्रीति के लिये सूचना दे रहे है । किंशुक (ढाक) के वृक्ष प्रग्नि की प्रच ज्वाला के नमान चौतर्फी रक्त हो गये थे, उनमें ऐसा जान पडने लगा मानो विमुक्त हुये अनुरक्त रनीपुम्पी की उपशात विरह ज्वाला फिर से धन उठो है । उस समय अशोक वृक्ष नवीन युवा की तुलना कर रहा था | क्योकि युवा के शरीर पर जिन प्रकार रणनूपुरचारम्नीकोमल नमताडित. पल्लवागर भनवार शव्द करती हुई पानी के प्रति के के समान वृज भी अनकार पत्रों में युकने कोमल जाते हैं, उसी प्रशोक का जीनगया।

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