Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 154
________________ जैन-कथाओं में समुद्र-यात्राएँ पुरातन जैन-कथाओ के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन काल मे व्यापार अनेक असुविधानो के होने पर भी उन्नत था । व्यापारी लोग दूर-दूर देशो मे जाकर माल बैचते और खरीरते थे। मार्ग सुरक्षित न थे और चोर-डाकू व्यापारियो को सताते और उनके धनादि का अपहरण करते रहते थे । अनेक कष्टो को झेलते हुए भी व्यापारियो का दल जल-थल यात्रा करता था । तथा विविध देवी-देवताओ की अर्चना करके अपने मन्तव्यो की पूर्ति की कामना से अपनी वैभव वृद्धि मे सफल होता था। इन यात्राओ (सामुद्रिक यात्रानो) से विदित होता है कि व्यापारिक केन्द्र बडे नगरो मे होते थे और कई द्वीपो से रत्नादि की प्राप्ति भी होती थी । कुशल व्यापारी साहस के साथ जल यात्राएँ करते थे । धनोपार्जन के साथ-साथ अनुभव मे भी वृद्धि करते थे एव कौनसी वस्तु कहाँ प्राप्त होती है और कौन से पदार्थ की माग कहाँ है इन सब व्यापारिक तत्वो को समझ कर अपनी श्री वृद्धि करके सन्तुष्ट होते थे ।। इन समुद्र यात्राओ के उपलब्ध विवरण यह भी बताते है कि व्यापारी तूफानो से किस प्रकार जूझते थे, तथा विपत्ति के क्षणो मे सामूहिक सहयोग और दृडता से किस प्रकार अगाध जल-राशि की क्षुब्ध धारा को शान्त वातावरण मे परिवर्तन कर देते थे। जल-देवता की पूजा जल यात्रा प्रारम्भ करते समय अनिवार्य रूप से की जाती थी और सफल यात्रा की खुशी मे जल-देवता को पूर्ण आस्था से धन्यवाद भी दिया जाता था ।

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