Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 152
________________ १३४ जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन ष्ट धरोहर है । यहाँ कुछ वर्णन प्रस्तुत किये जाते हैं जो भाषा की दृष्टि से पठनीय है (१) __ इस भरत क्षेत्र मे काशी नामक प्रदेश है जहाँ हाथियो के झुण्ड विचरण करते है और जहाँ सरोवर कमल-पुष्पो से शोभायमान हो रहे हैं। वे चकवो को धारण करते हुए ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे रथी अपने रथो के चक्को को धारण किये हो । इस प्रदेश की सरिताओ मे प्रचुर पानी बहता रहता हैं और इस प्रकार वे उन शूल व कृपाणधारी वीराङ्गनाओ का अनुसरण करती हैं जिनके शस्त्रो की धारे खूब पानीदार अर्थात पैनी है। वहाँ के सघन वनउपवन सरस फलो से व्याप्त है जिनका शुक चुम्बन करते हैं, इसी प्रकार यहाँ की पुरनारियो के मुख कमल लावण्ययुक्त हैं जिनसे वे अपने पुत्रो के मुखो का खूब चुम्बन करती है । वहाँ के ग्रामीण किसान जब अपसे काँस के खेतो को जोतने के लिए हलो को हाथ मे लेकरे चलते हैं तब वे विष्णु और हलधर (बलभद्र) के समान दिखाई देते है। __(सुअध दहमी कहा-का हिन्दी अनुवाद) जिस अवन्ति देश मे पुण्यवान पुरुषो के गृह धनादि लक्ष्मी के साथ और लक्ष्मी पात्रदान के साथ एव पात्रदान सन्मानादि विधि के साथ स्वाभाविक स्नेह प्राप्त करते है। जिस प्रकार क्षीर समुद्र के तटवर्ती पर्वतो के समूह उसकी तरगो से सुशोभित होते है उसी प्रकार वहाँ के गृह भी क्रीडा करते हुए बछडो के समूह से शोभायमान होते थे। यशस्तिलक चम्पू काव्य-द्वितीय आश्वास पृष्ठ १०४ __ वैशाख कृष्ण दशमी को श्रवण नक्षत्र और शुभ दिन मे तीन ज्ञान धारी पुत्र का जन्म हुआ। जिस प्रकार पूर्व दिशा प्रचण्ड तेजस्वी निर्भय सूर्य को जन्म देती है, उसी प्रकार माता ने महान् तेजस्वी तथा ससार मे ज्ञान का प्रकाश करने वाले पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के जन्म समय सभी दिशाएँ निर्मल हो गयी, आकाश स्वच्छ हो गया, शीतल हवा बहने लगी। कुटुम्ब मे अत्यन्त हर्ष हुआ, घर-घर मे गीत-नृत्य होने लगे । मनोहर बाजे बजने लगे । स्वर्ग मे घटानाद, ज्योतिलोक मे सिंहनाद, व्यन्तरो के यहाँ दुन्दुभिनाद और भवनवासियो के यहाँ शखनाद होने लगा । चतुनिकाय के देवो के यहाँ पारिजात आदि फूला की वर्षा हुई तथा बाजे बजने लगे । देवो के मुकुटो मे चमक

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