Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 124
________________ जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन हुआ सरोवर दर्शक की आँखो को प्रानदित कर देता है । सुरभित पुष्प किस स्नेही की लालसा को मुखरित नही करते ? १०६ पलाश के फूलो की दहकती लालिमा किस विरहिणी को उद्वेलित नही करती ? डॉक्टर शान्ति स्वरूप गुप्त के शब्दो मे प्रकृति के साथ मानव का सम्बन्ध तभी से है जब से वह इस धरातल पर आया । शिशु के रूप में उसने प्रकृति जननी की ही उन्मुक्त क्रीड मे नेत्रोन्मीलन किया, उसी की गोद मे उसने स्वच्छन्द विहार किया और अन्त मे उसी के वक्षस्थल पर वह चिर निद्रा मे सोता रहा । महादेवी वर्मा ने प्रकृति और मानव के सम्वन्ध पर विचार करते हुए fखा है - " दृश्य प्रकृति मानव जीवन को प्रथ से इति तक चक्रवाल की तरह घेरे रही है । प्रकृति के विविध कोमल परुप, सुन्दर, विरूप, व्यक्त, रहस्मय रूपो के आकर्षण ने मानव की बुद्धि और हृदय को कितना परिष्कार और विस्तार दिया है इसका लेखा-जोखा करने पर मनुष्य प्रकृति का सबसे अधिक ऋणी है । वस्तुत संस्कार - क्रम मे मानव जाति का भावजगत ही नही उसके चिन्तन की दिशाएँ भी प्रकृति से विविध रूपात्मक परिचय द्वारा तथा उससे उत्पन्न अनुभूतियो से प्रभावित है । यो तो धर्म, दर्शन, साहित्य और कला इन सभी मे प्रकृति-चित्रण को स्थान मिला है, किन्तु काव्य मे इसे सर्वाधिक महत्व प्राप्त हुआ है । इसका मुख्य कारण यह है कि काव्य का रचयिता कवि साधारण मानव की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है और वह प्रकृति के विभिन्न दृश्यों से बहुत शीघ्र और अधिक अभिभूत होता है ।" 1 जैन कथाकारों ने अपने धार्मिक सिद्धान्तो एवं उपदेशो को प्रभावो - त्पादक बनाने के लिए प्रकृति के उपकरणो को विशेष रूप से अपनाया है । त्याग - वृत्ति की उपादेयता सिद्ध करने के लिए इन कथाकारो ने वृक्षो, मेघो सर - सरिता एव पुष्पो के उदाहरण दिये है । इसी प्रकार परोपकार की भावना को जाग्रत करने के लिए इन कथाओ मे गाय, पवन, ग्राकाश, मेघ, कानन, पर्वत आदि की जीवन-गाथा का सकेत किया गया है । जीवन क्षरण भगुर हैइस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए फूले हुए वृक्ष एव शुष्क तरु को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कही कही पर कथा की रोचकता का 1 साहित्यिक निबंध पृष्ठ ४८२

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