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जैन कथाओं का साहित्यिक सौन्दर्य
साहित्यिक दृष्टि से जैन कथा साहित्य की महत्ता सर्वमान्य है। साहित्य मे जिस गरिमा, विश्व-कल्याण, उदात्त भावना, सास्कृतिक प्रबोधन, सार्वभौमिक सहयोग, पुनीत सौन्दर्य बोध, सरसता, सत्य, शिव, सुन्दर की व्यापकता, कलात्मक अभिव्यजना, सार्वजनीन सरस भावुकता आदि की प्रतिष्ठा की गई है, उसकी रूपात्मक अभिव्यक्ति बडे कौशल के साथ इन कथानो मे उपलब्ध होती है।
जैन कहानियो मे धर्म, अर्थ, काम एव मोक्ष-इन चार तत्वो का विशद विवेचन हुआ है, फिर भी धर्म साधना के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति का उद्देश्य विशेषत सर्वत्र मुखरित है । शृ गारादि नव रसो की यहाँ सरस अभिव्यजना हुई है लेकिन आध्यात्मिक वाताबरण के परिप्रेक्ष्प मे शान्त रस की प्रधानता उल्लेख्य है । सासारिक रूपासक्ति तथा वैभव शालिता की इन कथानो मे उपेक्षा प्रदर्शित नही हुई है अपितु यथावसर इनके रसपूर्ण चित्रण के साथसाथ जीवन के चरम लक्ष्य-विरक्ति का सहज निरूपण करके कथाकार ने शम की प्रधानता को कभी नहीं भुलाया है। इन कहानियो मे एक ओर शृगार का सुखद सम्मिश्रण है और दूसरी ओर जीवन की विरक्ति शब्द-शब्द मे मुखर हुई है । कतिपय कहानियो मे राग (प्रेम) का बडा मर्मस्पर्शी चित्रण किया है लेकिन कथा-समाप्ति पर इस राग की निस्सारता को बताकर कथाकार ने विरक्ति- परिपूर्ण एक महान् उद्देश्य की परिपुष्टि निम्नस्थ छन्दो की भावना मे की है