Book Title: Jain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 147
________________ जैन कथायो में नामो को सयोजना १२६ थे। कहा जाता है कि भरतवश की छटी पीढी मे राजा हस्ति हुए । उन्होने हस्तिनापुर नाम की नगरी वसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया था । इसी तरह भरत के पुत्र तक्ष ने तक्षशिला और पुष्कर ने पुष्करावती बसाई थी। बुन्देलखण्ड प्रान्त मे चदेल और बुन्देल राजानो के वसाये हुए कई स्थल मौजूद है। मदनपुर को चदेल राजा मदन वर्मा ने बसाया था । ललितपुर सुमेरसिंह की रानी ललिता का वसाया हुया वताया जाता है । हमीरपुर को अलवर के किसी हमीर देव नामक राजपूत ने बसाया था।"] ग्रामो के सम्बन्ध मे विशिष्ट पशु-पक्षियो एव पादप-पुष्पो का बाहुल्य उल्लेख्य है । सूकरपुरा गाँव मे जगली सुअरो का एक समय बाहुल्य था। अत ग्राम को सूकरपुरा नाम प्राप्त हुआ । इसी पकार कगलिया (कागो का आधिक्य सूचित करता है) इमलिया (इमली नामक वृक्षो का बाहुल्य बताता है) कैथा (कपित्थ-कथा की अधिकता सूचित करता है) वेला (एक प्रकार के सुगन्धित पुष्प का बाहुल्य प्रकट करता है) आदि ग्रामो के नाम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये जा सकते है । इस प्रकार के हजारो ग्राम नाम प्रचलित है । कन्यायो एव युवतियो के नाम कर्ण-प्रिय होने चाहिए-यह महर्षियो का मत है । ऋपियो के इस अभिमत का उपयोग नारियो तथा वालिकामो के नामकरण मे विशेषत हुआ है । देवालयो, पर्वतो एव सर-सरितायो के नाम विशिष्ट ऋषि-मुनियो, विशिष्ट भू-भागो, घटनाविशेष, सलिल-रगादि पर आधारित कहे गये है । विशिष्ट धातु की उपलब्धि कभी-कभी भूवर एव सर-सरिताओ के नामकरण का प्राधार बन जाती है। कतिपय नाम ऐसे भी है जिनका सम्बन्ध प्राकृत, सस्कृत, अपभ्रश, गोडी, मालवी, बुन्देली, वघेली, मराठी, छत्तीसगढी, कन्नड, मलयालम आदि भाषा-बोलियो से है । ऐसे नामो का अध्ययन भी वडा रोचक होगा । श्रावश्यकता है विभिन्न भापानो और बोलियो के सम्यक् अव्यवन की । जन कथानो मे आये हुए विभिन्न नामो का अनुगीलन यदि धार्मिक, सामाजिक, ऐनिहासिक, भाषा वैज्ञानिक, पुरा तत्त्वीय आदि दृष्टिकोणो से किया जाय तो इन नामो की सीमा, उत्पत्ति विस्तार आदि का एक विशद इतिहाम हो उपलब्ध हो सकता है। लेकिन यह कार्य बहुत प्रतिभावान विद्वान के श्रम से ही पूर्ण हो सकेगा। । गामो और नगरो का नामकरणले० श्रीकृष्णानन्द गुप्त मार १ जुलाई १९४२ ।

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