________________
जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन
है । ऐसी स्थिति मे अनन्त शक्ति सम्पन्न आत्मा के प्रभाव से जो अलौकिकता प्रदर्शित होती है वह कैसे कल्पित कही जा सकती है । तप पूत दिगम्बर मुनियों के प्रभाव को प्रमाणित करने वाले ग्राश्चर्यो को क्या हम कल्पित कह सकेगे ? भले ही ये ग्राज के मानव के लिए सन्देहास्पद हो लेकिन जैनाचार्यो के लिये तो ये निर्णीत ही थे तथा आज भी है । ग्रात्मा की पावनता से यदि दुर्भिक्ष शान्त होता है एव भयावह रोग शमित हो जाते है तो कोई आश्चर्य नही है । मत्रादि के प्रभाव से जो विद्वान परिचित है वे इस तथ्य को ग्रस्वीकृत न करेगे कि मत्रो की सिद्धि से हिंसक पशु मृग की भाँति विनम्र हो जाते है, असाध्य रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते है एव विनाशक आक्रमण निष्फल हो जाते है । भक्तामर स्तोत्र की कथाएँ इस नदर्भ मे उद्धृत की जा सकती है । ग्रा के कतिपय विद्वान् कथाओ मे उल्लिखित इस प्रकार के ग्रलौकिक तत्वो को कथानक रूढियो अथवा लोक - विश्वासो के रूप मे स्वीकार करते है ।
६०
सामान्यत जैन कथाओ मे इन अलोकिक तत्वों को निम्नलिखित प्रयोजनार्थं समाविष्ट किया गया है |
( १ ) जैन धर्म के प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए । (२) कथावस्तु को आकर्षक बनाने के लिए |
(३) मत्रादि के प्रभाव को बनाने के लिए । ( ४ ) महापुरुषो की गरिमा को चित्रित करने के लिए ।
( ५ ) प्रमुख पात्रो के चरित्रो के विकास के लिए |
( ६ ) उत्सुकता समुत्पन्न करने के लिए ।
( ७ ) समुचित वातावरण की सृष्टि के लिए ।
( 5 ) परम्परा के निर्वाहार्थ |
(९) कथानक की अभिवृद्धि के लिए ।
(१०) उद्देश्य की पूर्ति हेतु ।
(११) कथावस्तु मे नए मोड लाने के लिए ।
(१२) विशिष्ट अभिप्राय की पुष्टि हेतु आदि ।
जैन कथाओ मे विविध प्रकार के अलौकिक तत्वों को प्रदर्शित किया गया है । यहा ऐसे कतिपय तत्वो की सामान्य चर्चा की जा रही है
(१) ब्रह्मचर्य व्रत के प्रभाव से हथियारो का पुष्पादिक के रूप मे परिवर्तित हो जाना एव उसी समय यक्षादि का प्रकट होकर राजादि के नौकरी को जहाँ का तहाँ कील देना तथा माया से चतुरगिरणी सेना को तैयार करना । पुण्यात्रव - कथाकोष, सुदर्शन सेठ को कथा, पृष्ठ ११६ ।