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अपनी बात
का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में भाग लेने वालों को श्री जैन दिवाकरजी महाराज से सम्बन्धित काफी साहित्य पढ़ने हेतु निःशुल्क भेजा गया। हमें सन्तोष है कि अनेक लेखकों ने श्री जैन दिवाकरजी महाराज को पढ़ा है, गहराई से पढ़ा है और अपने नजरिये से देखकर उन पर लिखा है। इन लेखों में घटनाओं की पुनरावृत्तियां तो होना सम्भव है, क्योंकि विभिन्न लेखक एक ही व्यक्तित्व पर जब अपने विचार व्यक्त करेंगे तब घटनाएं तो वे ही रहेंगी, किन्तु चिन्तन-मनन और निष्कर्ष अपना स्वतन्त्र होगा। 'व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें' शीर्षक खण्ड में ऐसा ही कुछ प्रतीत होगा।
इस ग्रन्थ के खण्ड हमने नहीं किये हैं, फिर भी विभागों का वर्गीकरण जो हुआ है वह खण्ड जैसा ही बन गया है । प्रथम विभाग में कालक्रमानुसार श्री जैन दिवाकरजी महाराज का सम्पूर्ण जीवन-वृत्त दिया है। अब तक गुरुदेवश्री के जितने भी जीवन-चरित्र प्रकाशित हए हैं उनमें स्व० उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज द्वारा लिखित 'आदर्श मुनि' तथा 'आदर्श उपकार' सबसे अधिक विस्तृत एवं प्रामाणिक जीवन-चरित्र है। किन्तु इन पुस्तकों में वि० सं० १९८७ तक का ही जीवन-वृत्त मिलता है। इस संवत के बाद का जीवन-वृत्त कहीं लिखा हुआ नहीं मिलता, जबकि इसके बाद के चातुर्मास बहुत ही अधिक प्रभावशाली तथा महत्त्वपूर्ण रहे हैं। लोकोपकार की दृष्टि से इन चातुर्मासों की अपनी महत्ता है। मैंने जीवन-चरित्र लिखते समय संवत् १९८७ के बाद के जीवन-वृत्त को विस्तार पूर्वक लिखने के लिए अनेक स्थानों पर सामग्री खोजने का प्रयत्न किया है। ब्यावर-आगरा में पुरानी सामग्री-जैन प्रकाश की फाइलें, जैन पथ-प्रदर्शक आदि पत्रों की फाइलें देखने की चेष्टा की। परन्तु लिखित सामग्री तो उपलब्ध हुई ही नहीं, मुद्रित सामग्री भी कुछ ही उपलब्ध हुई। देहली में भी जैन प्रकाश की कुछ पुरानी फाइलें मिलीं। इनमें से कुछ सामग्री, कुछ घटनाएँ मिली है यथास्थान इनका लेखन जीवन-चरित्र में किया है और अधिक से अधिक प्रामाणिक बनाने का प्रयत्न भी किया है ।
दूसरे विभाग में गुरुदेवश्री से सम्बन्धित कुछ संस्मरण हैं । यद्यपि बीज रूप में ये घटनाएं प्रायः जीवन-चरित्र में आ गई हैं, पर हर लेखक अपनी दृष्टि से कुछ-न-कुछ नवीनता के साथ रखने की चेष्टा करता है, अतः कुछ रुचिकर संस्मरण दूसरे विभाग में ले लिए हैं।
तीसरा विभाग ऐतिहासिक महत्त्व का है। गुरुदेवश्री के भक्त-राजा, राणा, ठाकुर, जागीरदार आदि लोगों ने उनकी करुणा प्रपूरित वाणी से प्रभावित होकर जीवदया के पट्टे, अगता पालने की सनदें आदि घोषित तथा प्रचारित की, उनकी मूल प्रतिलिपि (आदर्श उपकार पुस्तक से) यहाँ दी गई हैं।
चतुर्थ विभाग में श्रद्धांजलियां हैं। आजकल श्रद्धांजलिया सर्वप्रथम छापी जाती है, पर मेरे विचार में पहले श्रद्ध य के उदात्त जीवन की झांकी मिलनी चाहिए, फिर श्रद्धार्चन होना चाहिए अत: इन्हें चतुर्थ विभाग में रखी है।
पंचम विभाग में गुरुदेवश्री के व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणों की एक विरल झांकी है। 'जैन दिवाकर स्मृति निबन्ध प्रतियोगिता' में लगभग ३०-४० निबन्ध आये थे। उनमें से जो अच्छे स्तर के निबन्ध प्रतीत हुए उनका समावेश इस विभाग में किया गया है। मैं पहले भी लिख
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